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ख़त्म हो जायेगी दुनिया अगर नहीं बचाई ‘ओज़ोन परत’

समाचार फर्स्ट |

लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए विश्व ओज़ोन दिवस या 'ओज़ोन परत संरक्षण दिवस' 16 सितम्बर को पूरे विश्व में मनाया जाता है।  23 जनवरी, 1995 को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में पूरे विश्व में 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओज़ोन दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया।  जिसका सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य लोगों को ओज़ोन परत के संरक्षण हेतु जागरुक करना है। उस समय लक्ष्य रखा गया कि पूरे विश्व में 2010 तक ओज़ोन फ्रेंडली वातावरण बनाया जाए। हालांकि अभी भी लक्ष्य दूर है, परन्तु प्रयास निरंतर जारी है।

इतिहास और भूगोल के अध्ययन से  यह साफ़ है कि मानव ने हर उस प्राकृतिक देन को हानि पहुंचाई है। जो उसकी प्रगति में बाधा डाल रही है।  इसी तरह इंसान ने अपने आराम और आवश्यकता के लिए उस ओज़ोन परत को भी नष्ट करने की ठान ली है, जो सूर्य से निकलने वाली खतरनाक पराबैंगनी किरणों से उसकी रक्षा करती है। दिनों-दिन बढ़ रही औद्योगिक गतिविधियों के कारण आज हमारे जीवन को बचाने वाली ओज़ोन परत खुद अपने अस्तित्व को खो रही है। वह आज खुद हमसे उसके संरक्षण की गुहार कर रही है।

धरती से 10 से 50 किलोमीटर की दूरी पर है ओज़ोन परत

ओज़ोन एक हल्के नीले रंग की गैस होती है जो धरती से 10 से 50 किलोमीटर की दूरी के मध्य पाई जाती है। यह गैस सूर्य से निकलने वाली खतरनाक पराबैंगनी किरणों के लिए एक फिल्टर के रूप में काम करती है। परन्तु हमारा संरक्षण करने वाली ओजोन परत आज खुद खतरे में है। जहरीली गैसों से ओज़ोन परत में एक छेद हो गया है और अब इस छेद को भरने के लगातार प्रयास किये जा रहे है। यह जहरीली गैसें मानव जाति द्वारा एसी और कूलर जैसे एयर कंडीशनर उत्पादों में इस्तेमाल होती हैं। इनके अलावा सुपर सोनिक जेट विमानों से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड भी ओज़ोन परत की मात्रा को कम करती है। ओज़ोन की परत विशेष तौर से ध्रुवीय वातावरण में बहुत कम हो गई है।  ओज़ोन परत का एक छिद्र अंटार्कटिका के ऊपर स्थित है।

पराबैंगनी किरणों से होने वाले नुकसान 

पराबैंगनी किरणे ओज़ोन की परत को नष्ट अथवा पतला कर रही है। इन पराबैंगनी किरणों को तीन भागों में बांटा गया है और इसमें से सबसे ज्यादा हानिकारक यूवी-सी 200-280 होती है। ओज़ोन परत हमें उन किरणों से बचाती है, जिनसे कई तरह की बीमारियां होने का खतरा रहता है। पराबैगनी किरणों (अल्ट्रा वायलेट रेडिएशन) की बढ़ती मात्रा से चर्म कैंसर, मोतियाबिंद के अलावा शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता भी कम हो जाती है। इनके साथ ही यह सूक्ष्म जीवाणुओं पर भी अपना प्रभाव छोड़ती है।