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पहले महंगे फोन-टैब्स और अब मंत्रियों के लिए SUV गाड़ियां ख़रीदेगी सरकार

पी. चंद |

एक ओर हिमाचल 46 हजार से ज्यादा कर्ज में डूबा हुआ है और वहीं सरकार अपने मंत्रियों की डिमांड्स पूरी करने में लगी है। पहले जहां महंगे फोन-टैब्स वग़ैरा मंत्रियों को दिए गए थे, वहीं अब सरकार कुछ मंत्रियों को नई महंगी गाड़ियां देने की बात कर रही है। जी हां, मिली जानकारी के मुताबिक सरकार अपने कुछ मंत्रियों के लिए एसयूवी टॉप मॉडल ख़रीदने जा रही है। हालांकि, विपक्ष इसको लेकर सरकार को आड़े हाथों ले रहा है और फिजूल खर्ची के आरोप भी लगा रहा है।

दरअसल, जयराम सरकार अपने 3 मंत्रियों के लिए नई गाड़ियां ख़रीदने रही है और बकायदा इसे मंजूरी भी दे दी गई है। लिहाजा, मुख्यमंत्री ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि कांग्रेस की मंत्रियों ने सत्ता में आते ही नई गाड़ियां ख़रीदीं, जबकि हमारी सरकार में मंत्री 3 लाख किमी से ज्यादा चल चुकी गाड़ियों पर सफर कर रहे हैं। अब वे गाड़ियां काम करना बंद कर देंगी तो नई गाड़ियां लाना लाजमी हैं।

वहीं, बताया तो ये भी जा रहा है कि पूर्व सरकार में कैमरी गाड़ियां ख़रीदी गई थी जो कि जयराम के मंत्रियों के रास़ नहीं आ रही। उनका कहना है कि पहाड़ी इलाकों कैमरी गाड़ी सही नहीं, जिसके लिए एसयूवी मॉडल की डिमांड रखी गई है।

विपक्ष के सरकार पर आरोप

उधर, विपक्ष ने सरकार द्वारा गाड़ियों की खरीद पर फिजूलख़र्ची के आरोप लगाए। प्रदेश अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि प्रदेश आर्थिक संकट से जूझ रहा है कि जबकि सरकार मंत्रियों के लिए गाड़ियां ख़रीदने में लगी है। मंत्रियों को 50-50 लाख की गाड़िया दी जाएंगी तो प्रदेश की अर्थव्यवस्था का क्या होगा। जयराम सरकार फिजूल खर्च के जरिये हिमाचल के अर्थव्यवस्था को नुक्सान पहुंचा रही है।

यही नहीं,  सोमवार को सदन की कार्यवाही में कर्ज पर विपक्ष ने सरकार को घेरा। हालांकि, मुख्यमंत्री ने विपक्ष पर इसका सारा ठीकरा फोड़ते हुए अपने आप को सेफ रखा। लेकिन, अब मंत्रियों के लिए गाड़ियों की ख़रीदारी पर मुख्यमंत्री अपने ही बयानों में उलझ गए हैं।

ग़ौरतलब है कि इससे पहले भी सरकार अपने मंत्रियों पर मेहरबान हो चुकी है और हजारों की कीमत के फोन-टैब अपने मंत्रियों को दिये गये हैं। अभी तक 3 महीने के कार्यकाल में सरकार ने कुल 2300 करोड़ का कर्ज लिया है, जिससे आगामी दिनों में वित्तीय संकट का अंदाजा लगाना भी संभव है। पूर्व सरकार के दौरान कर्ज 46,385 करोड़ था।