“दूसरे खिलाड़ियों इतनी इज्जत और शोहरत मिलती है। लेकिन, हमारे बच्चों के साथ यह गुमनामी क्यों? मेरी बेटी दिव्यांग है, लेकिन हमने अपने दम पर उसके खेल को बढ़ावा दिया और आज वह अपनी क्षमता की बदौलत दुनिया भर में हिमाचल ही नहीं बल्कि देश का नाम रौशन की है। हमारे बच्चों की उपलब्धियों की चर्चा ना तो अखबार में है और ना ही लोगों की जुबान पर।”
विंटर स्पेशल ओलिंपिक गेम्स में सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली ज्योति की मां समाचार फर्स्ट की टीम से अपनी बातें कह रही थीं। कांगड़ा जिले के ‘क्लेड’ गांव की रहने वाली ज्योति ने ऑस्ट्रिया में हुए विंटर स्पेशल ओलिंपिक गेम्स में अपना जौहर दिखाया है। दिव्यांग कैटगरी में उन्होंने वर्ल्ड में भारत का झंडा बुंलद किया है।
ऐसे ही दूसरे खिलाड़ी हैं राजेश, जिन्होंने विंटर स्पेशल ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर पूरे विश्व में नया रिकॉर्ड स्थापित किया है। उनकी इस कामयाबी की चर्चा विदेशों में खूब है, लेकिन अफसोस की देश के किसी अखबार में इनका जिक्र तक नहीं है।
पूर्व सैनिक परिवार से ताल्लुक रखने वाले राजेश कांगड़ा जिले के गग्गल के रहने वाले हैं। उनकी इस कामयाबी पर गांव तो खुश है, लेकिन सरकारी तंत्र की बेरुखी से नाराज भी हैं। राजेश के पिता कहते हैं,“ऑस्ट्रिया जाने से पहले राजेश के फिजिकल फिटनेस के टेस्ट करवाने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े थे। कई दिनों तक अस्पताल के चक्कर लगाने पड़े और डॉक्टरों की तरफ से हमें बिल्कुल सहयोग नहीं मिला।”
समाचार फर्स्ट की खबर का असर
समाचार फर्स्ट ने इन खिलाड़ियों के बारे में सबसे पहले ख़बर प्रकाशित की थी। जिसके बाद कम से कम पंचायत प्रतिनिधियों को इस बात की ख़बर लगी और उन्होंने इन खिलाड़ियों को सम्मानित किया। 14 से लेकर 25 मार्च तक ऑस्ट्रिया में विंटर स्पेशल ओलिंपिक का आयोजन हुआ था। जिसमें भारत से कुल 126 दिव्यांग खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया, इनमें हिमाचल से 18 खिलाड़ी शामिल थे। इन 18 खिलाड़ियों ने कुल 21 मेडल पर कब्जा जमाया।
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इनमें प्रमुख रूप से कांगड़ा के ज्योति और राजेश हैं, जबकि चंबा के संजय ने गोल्ड जीतकर नया कीर्तिमान स्थापित किया।हालांकि, प्रदेश सरकार से अभी भी इन खिलाड़ियों को सहयोग की उम्मीदें लगी हुई हैं। बेहतर होगा कि राजनीतिक रस्सा-कस्सी के अलावा भी राजनेता इन प्रतिभाओं की भी सुध लें।