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नासिक के बाद बैजनाथ के ‘महाकाल’ में है रहस्यमयी शनि मंदिर…

पी. चंद |

पर्यटक स्थल से पहले हिमाचल प्रदेश देवभूमि के नाम से जाना जाता है। पहाड़ी प्रदेश हिमाचल खूबसूरत घाटियों वादियां तो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती ही है साथ में ही यहां के शक्तिपीठ एवं मंदिर भी देश विदेश के सैलानियों की पहली पसंद हैं।

देवभूमि हिमाचल में धार्मिक स्थलों के लिए कांगड़ा जिला काफी प्रसिद्ध है। मशहूर शक्ति पीठ चामुण्डा देवी, बृजेश्वरी देवी, बगलामुखी, ज्वालामुखी सहित कई धार्मिक स्थल भी यहीं है। इसके अलावा बैजनाथ में पड़ने वाला महाकाल मंदिर भी लोगों की आस्था का केन्द्र है। माना जाता है महाकाल का शनि मंदिर पूरे भारत वर्ष में दूसरा बड़ा मंदिर है जहां साक्षात शिव एवं शनि वास करते हैं।

शिवलिंग पर चढ़ाया जाने वाला दूध कहां गायब हो जाता है वैज्ञानिक भी नहीं लगा पाए पता

महाकाल मंदिर के पुजारियों एवं लोगों का ये कहना है कि महाकाल मंदिर के शिवलिंग पर चढ़ने वाला दूध कहीं भी बाहर नहीं निकलता है बल्कि शिवलिंग में ही समा जाता है। ये रहस्य आज भी बरकरार है कि शिवलिंग पर चढ़ने वाला दूध कहां जाता है। वैज्ञानिक भी इस रहस्य पर से आज तक पर्दा नहीं उठा पाए हैं।

पांडवों ने किया था महाकाल मंदिर का निर्माण

महाकाल के पूजारियों का कहना है कि भगवान शिव के तेज से यहां शिवलिंग का निर्माण हुआ था और शिवलिंग पर चढ़ाया जाने वाला दूध या पानी खुद भोलेनाथ ग्रहण कर लेते हैं। माना जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने महाकाल मंदिर का निर्माण किया था और शिवलिंग की पूजा अर्चना की थी।

मंदिर के प्रांगण में हैं 7 कुंड

महाकाल मंदिर कांगड़ा जिला के बैजनाथ शिवमन्दिर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। देश में नासिक के बाद दूसरा इस तरह का रहस्यमयी मंदिर शनि भगवान का मंदिर महाकाल में ही है। महाकाल मंदिर अघोरी साधना व तंत्र विद्याओं का भी केंद्र माना जाता है। पुजारी के मुताबिक सालों पहले महाकाल में शव नहीं जलने पर घास का पुतला जलाया जाता था। मंदिर के प्रांगण में 7 कुंड बने हुए हैं। ऐसी मान्यता है कि सप्त ऋषियों ने इसका निर्माण कराया था।

शिव कुंड के पानी से होता है महाकाल का जलाभिषेक
 
मंदिर के पुजारी राम प्रसाद शर्मा ने बताया कि ब्रह्म कुंड का पानी पीने के लिए प्रयोग होता है।  शिव कुंड के पानी का इस्तेमाल महाकाल के अभिषेक व नहाने के लिए किया जाता है, लेकिन सती कुंड के पानी का प्रयोग नहीं किया जाता है।

ऐसा भी कहा जाता है कि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के वंशज की 3 महारानियां यहां सती हुई थीं। जिसके चलते मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पूर्वजों ने यहां मूर्ति स्थापित की। इस मंदिर में भादो महीने खूब भीड़ जुटती है। हर शनिवार को यहां मेला लगता है। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और महाकाल मंदिर के दर्शन करते हैं।