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आईजीएमसी ट्रॉमा सेंटर की बदहाली पर हाईकोर्ट सख्त, स्वास्थ्य सचिव को हलफनामा दायर करने के आदेश

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  • अदालत ने स्वास्थ्य विभाग से स्टाफ और सुविधाओं की कमी पर जवाब मांगा

  • सरकार ने 31 मार्च 2025 तक सभी कमियों को दूर करने का आश्वासन दिया


IGMC Trauma Center Negligence: हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) और अस्पताल शिमला के ट्रॉमा सेंटर में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को लेकर स्वास्थ्य विभाग पर कड़ी टिप्पणी की है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने कहा कि लोगों के जीवन के साथ किसी भी प्रकार का खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

अदालत ने पूछा कि 2014 में दायर जनहित याचिका के बाद 10 वर्षों में ट्रॉमा सेंटर को ठीक करने के लिए क्या कदम उठाए गए। विभाग से ट्रॉमा सेंटर में नियुक्त स्थायी स्टाफ, नर्सिंग स्टाफ, पैरामेडिकल डॉक्टर और अन्य कर्मचारियों की जानकारी मांगी गई। स्वास्थ्य विभाग ने बताया कि ट्रॉमा सेंटर के लिए न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन, प्लास्टिक सर्जन, लैब तकनीशियन, एमआरआई तकनीशियन और मल्टी टास्क वर्करों की संख्या शून्य है। रेडियोलॉजिस्ट केवल एक है। अदालत ने इस लापरवाही पर गहरी नाराजगी जताई।

सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने बताया कि नर्सों के 110 और अन्य 1200 पद जल्द ही आउटसोर्सिंग के जरिए भरे जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि स्थायी भर्तियों का काम भी जारी है, लेकिन तत्काल जरूरतें पूरी करने के लिए आउटसोर्सिंग की जा रही है। सरकार ने 31 मार्च 2025 तक सभी खामियों को दूर करने का आश्वासन दिया।

आईजीएमसी के प्रधानाचार्य ने अदालत में विभाग की गलती स्वीकार करते हुए भविष्य में सुधार का वादा किया। अदालत ने स्वास्थ्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से हलफनामा दायर करने का आदेश दिया और अगली सुनवाई की तारीख 2 जनवरी 2025 तय की। सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य सचिव एम. सुधा देवी, निदेशक चिकित्सा शिक्षा, और आईजीएमसी प्रधानाचार्य सहित अन्य अधिकारी उपस्थित रहे।