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पाटिल मैडम! बड़े धोखे हैं इस राह में…

नवनीत बत्ता, हमीरपुर |

हिमाचल प्रदेश कांग्रेस को नया प्रभारी मिल गया है। महाराष्ट्र से संबंध रखने वालीं रजनी पाटिल तत्काल प्रभाव से प्रदेश कांग्रेस की जिम्मेदारी देखने जा रही हैं। नये प्रदेश प्रभारी को लेकर हिमाचल कांग्रेस में अटकलें भी तेज़ हो गई हैं। माना जा रहा है कि संगठन स्तर पर कई बड़े फेर-बदल हो सकते हैं। लेकिन, बदलाव के दृष्टिकोण क्या होंगे… यह काबिल-ए-ग़ौर रहने वाला है। 

गुटबाजी का दलदल

हिमाचल प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है। पिछले चुनाव में कांग्रेस मिट्टी-पलीत व्यक्ति ‘ईगो’ और राजनेताओं के महत्वाकांक्षों की वजह से हुई। कांग्रेस में एक गुट ऐसा है जो संगठन को भी आंख दिखाने में गुरेज नहीं करता। नेताओं की कवायद संगठन पर अक्सर भारी पड़ जाती है। वहीं, दूसरे गुट भी खुद को हल्का साबित नहीं करना चाहता। जमीनी स्तर पर युवा कार्यकर्ताओं  और समाज के बड़े वर्ग इसकी पैठ है।

विधानसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन कांग्रेस प्रभारी सुशील कुमार शिंदे ने अपने स्तर पर नेताओं के ईगो को संतुष्ट करने के कई जुगाड़-जंतर लगाए। लेकिन असफल रहे। गुटबाजी का असर रहा कि पार्टी को बड़े स्तर पर नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि, हाईकमान के बड़े नेता भी राजनीति भ्रम के शिकार हो जाते हैं। जिस तरह के फीडबैक उन्हें दिए जाते रहे हैं, वह जमीनी हकीकत से कोसो दूर होते हैं।

सही वक़्त पर सही डिसीज़न नहीं लेना प्रदेश संगठन के लिए हानिकारक साबित होता रहा है। वक़्त की नजाकत और भविष्य की मांग पर आंख मूंदे रखना एक बड़ी कमी पेश आती रही है।

रंजीता रंजन का दौरा और गुटबाजी को हवा

हाल ही में प्रदेश की सह-प्रभारी रंजीता रंजन ने हमीरपुर और कांगड़ा का दौरा किया और कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की। बैठक का उद्देश्य 2019 लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र कार्यकर्ताओं में जोश भरना और रणनीति तैयार करना था। लेकिन, बैठक में वही बातें हुईं जो विधानसभा चुनाव के दौरान भी हुआ करती थीं।

उल्टा बैठक में हंगामा होने की भी ख़बरें आईं। हमीरपुर में एक कार्यकर्ता ने ऐसा हंगामा खड़ा किया कि रंजीता रंजन को उसे सभा स्थल से बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा। अनुशासन की बात हो ही रही थी कि अनुशासनहीनता सामने आ गई। कार्यकर्ता ने उल्टा आरोप जड़ दिया कि बैठक के बहाने गुटबाजी को हवा दी जा रही है।

कांग्रेस में कार्यकर्ता भी खेमों में बंटे हुए हैं। उनकी वफादारी पार्टी से ज्यादा अपने नेताओं के प्रति है। इस तरह देखा जाए तो नेताओं के पास निजी तौर जनशक्ति का आधार बड़ा है। वहीं, शीर्ष स्तर पर हर गुट का एक रहनुमा है। जहां से कोशिश शह और मात देने की चलती रहती है। ऐसे में अनुशासन कायम करना और ईमानदार कोशिश के तहत नेताओं की आपसी दूरियों को पाटना बड़ी चुनौती है। 

फिर चुनाव, फिर नया प्रभारी

पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अंबिका सोनी हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी थीं। उनके रहते ही चुनावी बिसात पर आंदरूनी गुटबाजी लोगों के बीच हंगामा मचाने लगी। 22 जुलाई 2017 को अंबिका सोनी ने इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह सुशील कुमार शिंदे ने ली।

इस दौरान कांग्रेस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 21 सीटें मिलीं, जबकि बीजेपी के खाते में 44 सीटें आईं। कई जगहों पर कांग्रेस के दिग्गज नेता कुछ सौ वोटों से हार का सामना किए। कई सीटों पर पार्टी की जीत तय मानी जा रही थी, वहां से उसका सफाया हो गया।

अब एक बार फिर लोकसभा चुनाव के मुहाने पर प्रदेश खड़ा है। बीजेपी की तरफ से चुनावी हलचल गांव-नगर से लेकर दिल्ली मुख्यालय तक जोर पकड़े हुए है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जून महीने में दौरा भी करने जा रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस में फिर से प्रदेश प्रभारी का काम नई शख्सियत के पाले में है। यह चुनौती रजनी पाटिल के लिए आसान नहीं होगी। क्योंकि, उनको यहां हर मोड़ पर भ्रम मिलने वाला है और हर पड़ाव पर जमीनी हकीकत बदलने वाली है।