देश के किसी भी शहर में प्रवेश करते ही बड़े-बड़े होर्डिंग्स और बिल-बोर्ड आपका स्वागत करते हुए दिखाई दे देते हैं। इन होर्डिंग्स में अंडरगार्मेंट, फर्म्यूम और शेविंग कीट के बाद इंजीनियरिंग और मेडिकल कराने वाले शैक्षणिक संस्थानों की भरमार सबसे ज्यादा होती है। इन्हें देख तो एक बार आदमी भारत के वेल-एजुकेटेड होने का मुग़ालता भी पाल लेता है। मगर, जब एजुकेशन में क्वालिटी की बात आती है, तो विश्व रैंकिंग में हम फिसड्डी साबित होते हैं।
हाल ही में 'टेक महिंद्रा' के सीईओ सीपी गुरनानी के एक बयान ने साफ कर दिया है कि देश में क्वालिटी एजुकेशन की हालत कैसी है। टेक महिंद्रा के सीईओ ने अपनी बात स्पेशली आईटी ग्रेजुएट के संदर्भ में पेश की है। अंग्रेजी अख़बार 'इकोनॉमिक टाइम्स' में छपी खबर के मुताबिक टेक महिंद्रा के सीईओ सीपी गुरनानी ने कहा है कि 94 फीसदी आईटी ग्रैजुएट भारतीय बड़ी आईटी कंपनियों में नौकरी के योग्य नहीं हैं।
गुरनानी का कहना है कि मैनपावर स्किलिंग और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, ब्लॉकचेन, साइबर सिक्योरिटी, मशीन लर्निंग सरीखे नई टेक्नॉलजी में घुसना इंडिया आईटी कंपनियों के लिए चुनौती है। जब नौकरी की बात आती है तो वर्ल्ड की बड़ी आईटी कंपनियां 94 फीसदी आईटी ग्रैजुएट इंडियन को इसके लिए योग्य नहीं मानतीं।
टेक महिंद्रा के सीईओ के मुताबिक स्किल्ड फोर्स की भारत में बहुत कमी है। उन्होंने नासकॉम के हवाले से बताया कि 2022 तक साइबर सिक्योरिटी में तकरीबन 60 लाख लोगों की जरूरत है, लेकिन स्कील की कमी कीवजह से यह मुमकिन नहीं हो पा रहा। उन्होंने कहा कि एक रोबोटिक शख्स से बेहतर है कि मेनफ्रेम का व्यक्ति मिले।