➤ हाईकोर्ट ने मंदिरों के दान की राशि के गैर-धार्मिक उपयोग पर लगाई रोक
➤ सरकार अब अपनी मर्जी से मंदिरों की धनराशि खर्च नहीं कर सकेगी
➤ दान राशि केवल धार्मिक, शैक्षिक और सामाजिक कल्याण कार्यों में ही उपयोग होगी
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार को मंदिरों में मिलने वाली दान राशि के दुरुपयोग को रोकने के लिए ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि अब मंदिरों में चढ़ाई गई रकम सड़क, पुल या सरकारी इमारतों के निर्माण जैसे कार्यों में खर्च नहीं की जा सकेगी। अदालत ने यह आदेश एक जनहित याचिका (PIL) के निपटारे के दौरान जारी किया, जिसमें याचिकाकर्ता कश्मीर चंद शांड्याल ने सरकार और ट्रस्टों द्वारा मंदिर निधियों के मनमाने उपयोग पर आपत्ति जताई थी।
जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस राकेश कैंथला की खंडपीठ ने कहा कि मंदिरों की दान राशि का उपयोग केवल धार्मिक, शैक्षिक, और सामाजिक कल्याण कार्यों के लिए किया जाएगा। अदालत ने सरकार को सख्त निर्देश देते हुए कहा कि मंदिर निधियों से सरकारी कल्याणकारी योजनाओं, निजी उद्योगों या व्यवसायों में निवेश नहीं किया जा सकता। यहां तक कि इस धन से दुकानें, मॉल या होटल चलाने पर भी रोक रहेगी।
कोर्ट ने आदेश दिया कि मंदिर मासिक आय-व्यय का पूरा ब्योरा अपने नोटिस बोर्ड या वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करें ताकि भक्तों का विश्वास बना रहे कि उनकी आस्था का पैसा धर्म के प्रचार और समाज कल्याण के लिए ही उपयोग किया जा रहा है।
इसके अलावा कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दान की राशि से कमिश्नर या मंदिर अधिकारी वाहन नहीं खरीद सकेंगे, न ही वीआईपी मेहमानों के लिए उपहार, स्मृति चिन्ह या तस्वीरें खरीदी जा सकेंगी।
कोर्ट ने बताया कि दान की राशि का प्रयोग अब केवल वेद और योग की शिक्षा, मंदिर रखरखाव, पुजारियों के वेतन, भेदभाव मिटाने, अंतर्जातीय विवाहों को बढ़ावा देने, और हिंदू धर्म के प्रचार जैसे कार्यों के लिए किया जाएगा। इसके साथ ही यह राशि स्कॉलरशिप, वेद गुरुकुल, धार्मिक प्रशिक्षण संस्थान, यज्ञशालाओं, गौशालाओं, वृद्धाश्रमों, अनाथालयों और चिकित्सा शिविरों के आयोजन में भी खर्च हो सकेगी।
अदालत ने चेतावनी दी कि यदि कोई ट्रस्टी मंदिर के धन का दुरुपयोग करता पाया गया, तो उससे वह राशि वसूल की जाएगी और वह व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होगा। कोर्ट ने कहा, “यह सदैव याद रखा जाना चाहिए कि धन देवता का है, सरकार का नहीं। ट्रस्टी केवल संरक्षक हैं, और धन का दुरुपयोग आपराधिक विश्वासघात माना जाएगा।”
इस फैसले से हिमाचल प्रदेश में लंबे समय से चल रही मंदिर निधियों की राजनीति पर भी विराम लग सकता है। प्रदेश में सरकारों पर मंदिरों के चढ़ावे की राशि का उपयोग गैर-धार्मिक कार्यों में करने के आरोप लगते रहे हैं। अब हाईकोर्ट ने अपने आदेश से इस प्रथा पर सख्त लगाम लगाने का रास्ता साफ कर दिया है।



