हिमाचल में बीजेपी-कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं के चुनावी संन्यास के बाद भी उनकी सक्रिय राजनीति ने नए समीकरण पैदा कर दिए हैं। ये नेता हैं बीजेपी सांसद शांता कुमार और कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम शर्मा। इन दोनों नेताओं ने 10 साल पहले एक्टिव पॉलिटिक्स से खुद को अलग करने की घोषणा कर दी थी, लेकिन दोनों ने राजनीति के इस महाभारत में खुद को कृष्ण की भूमिका में स्थापित कर लिया है।
बीजेपी में शांता कुमार और कांग्रेस में पंडित सुखराम की तेज़ होती सियासी गतिविधियों से इनके दल के नेताओं में टेंशन बढ़ गई है।क्योंकि, इनके आने से पार्टी की पूरी गणित ही बदल चुकी है और नेता अलग-अलग गुटों में बंटते नज़र आ रहे हैं।
इस कड़ी में वरिष्ठ नेता शांता कुमार की बात करें, तो वर्तमान में वह चंबा-कांगड़ा से बीजेपी सांसद हैं और ब्राह्मण वोट बैंक पर मजबूत पकड़ के लिए जाने जाते हैं। अपने एरिया में इनकी पैठ ऐसी है कि अधिकांश लोग आज भी इनके साथ हैं और कई नेता इन्हें अपना आदर्श मानते हैं। शांता कुमार सूबे के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। इनके और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बीच जो छत्तीस का आंकड़ा था वह किसी से छिपा नहीं है। ये दोनों कभी किसी मुद्दे पर साथ नहीं दिखे और दोनों में हमेशा ही खींचतान चलती रही है।
अब शांता कुमार की सक्रियता इसलिए भी चर्चा का विषय है, क्योंकि बीजेपी प्रदेश में सीएम पद के लिए उम्मीदवार की तलाश में है और केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा से शांता की हमेशा से करीबी रही है। शांता-नड्डा की करीबी और शांता की राजनीति में सक्रियता कहीं न कहीं धूमल खेमे के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है।
वहीं, दूसरी ओर बात करें कांग्रेस की तो यहां पर पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम की राजनीति में सक्रियता कुछ कांग्रेसियों के लिए परेशानी का कारण बनी हुई है। जब से सुखराम और कांग्रेस प्रभारी शिंदे की राजनीतिक मंत्रणा हुई है, तब से कांग्रेस में हलचल नजर आ रही है। शिंदे ने मंत्रणा में कार्यकर्ताओं को सुखराम की संचार क्रांति की याद दिलाई।
पं. सुखराम और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बीच भी हमेशा 36 का आंकड़ा रहा है। वीरभद्र सिंह 1998 में प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने का ठीकरा सुखराम पर फोड़ना कभी नहीं भूलते और सुखराम पर कई बार निशाना साध चुके हैं। सीएम के कई बयानों से आहत उनके बेटे अनिल शर्मा सीएम के प्रति अपनी नाराजगी भी जाहिर कर चुके हैं।
इस तरह से शांता-सुखराम की राजनीतिक सक्रियता से चुनावी रण में क्या-क्या नए समीकरण बनेंगे अब देखना महत्वपूर्ण है।