आज ही के दिन 4 अप्रैल 1905 सुबह हिमाचल के कांगड़ा जिले में विनाशकारी भूकंप आया था। उस भूकंप ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया था और 20 हजार जिंदगियों को लील लिया था। भूवैज्ञानिकों के अनुसार कांगड़ा घाटी के भूकंप के 2 केंद्र थे। एक केंद्र कांगड़ा-कुल्लू और दूसरा मसूरी-देहरादून इलाके में था। इस भूकंप से कई जगह भूस्खलन हुए, चट्टानें गिर गईं। धर्मशाला कस्बे की सारी की सारी इमारतें जमींदोज हो गई थीं। मैक्लोडगंज और कांगड़ा में ज्यादातर इमारतें ध्वस्त हो गईं थीं। ब्रिटिश गजेटियर के अनुसार कुल्लू-मनाली, शिमला, सिरमौर और देहरादून तक इस भूकंप ने अपनी विनाशलीला दिखाई थी।
इस विनाशकारी भूकंप की याद में जिला प्रशासन शिमला ने एक वॉक आयोजित की। जिसको डीसी शिमला राजेश्वर गोयल ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। उन्होंने बताया कि इस वॉक के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जा रहा है साथ ही भूकम्प में मृतकों को श्रदांजलि भी दी। शिमला में जिस तरह की इमारतें बनी हैं वह भूकम्प के ख़तरे को बढ़ा रही हैं। इसलिए जागरूक होना जरूरी है।
1905 में कांगड़ा में आए भीषण भूकंप में जहां जिला में जानमाल सहित कई भवन क्षतिग्रस्त हुए थे, वहीं जिला के 2 भवन सुरक्षित रह गए थे। इन भवनों को यह भीषण भूकंप जरा भी नहीं हिला पाया था। इन भवनों में एक जिला कांगड़ा का अंग्रेजों द्वारा निर्मित ट्रेजरी कार्यालय और दूसरा तारा देवी का मंदिर था। ये दोनों इमारतें न तो गिरी और न ही इनमें कोई दरार तक आई।
उक्त दोनों इमारतें आज भी उसी रूप में सुरक्षित खड़ी हैं। वर्ष 1905 में आए भूकंप में पांडवों के समय में निर्मित कांगड़ा किला से लेकर मैक्डलोडगंज का ऐतिहासिक चर्च तक इस त्रासदी की भेंट चढ़ गए थे। उत्तर भारत का प्रसिद्ध रॉक टैंपल भी इस भीषण भूकंप में नष्ट हो गया था। इस भीषण भूकंप के बाद अंग्रेजों ने जिला मुख्यालय कांगड़ा को बदलकर धर्मशाला स्थानांतरित कर दिया था।