हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर टिकट के दावेदारों की कमी नहीं है। हर चुनाव में काफी संख्या में लोग टिकट की दावेदारी पेश करते हैं और टिकट पाते हैं। मगर, इस दौरान सभी पार्टियां विनिबिलिटी के आधार पर टिकटों का आवंटन करती हैं,अब इसमें भले ही कोई क्रिमिनल बैकग्राउंड का क्यों ना हो। 2012 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो चाहें बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों दलों ने जिताऊ उम्मीदवार के तौर पर क्रिमिनल चार्ज से लैस नेताओं को भी अपना उम्मीदवार बनाया था। हालांकि, कई उम्मीदवार चुनाव हार गए, जबकि कईयों ने जीत दर्ज की थी।
ऐसे में सवाल उठता है कि राज्य के कुल 68 विधानसभा सीटों पर क्या स्वच्छता मिशन का असर दिखाई देगा। मतलब, क्या इन सीटों को क्रिमिनल उम्मीदवार मुक्त बनाया जाएगा। यह अपेक्षा ख़ासकर बीजेपी से ज्यादा है क्योंकि इस पार्टी की सरकार केंद्र में है और हमारे प्रधान-सेवक (प्रधानमंत्री) अक्सर स्वच्छता की बात करते हैं। ऐसे में इस पार्टी के ऊपर भी जिम्मेदारी ज्यादा है। वहीं, कांग्रेस भी अक्सर राजनीति में गुंडागर्दी को लेकर संजीदा भाषण देती है। लिहाजा उससे भी अपेक्षा रखना लाजमी है।
पिछली बार (2012) हिमाचल प्रदेश में तकरीबन 30 फीसदी क्रमिनिल चार्ज वाले उम्मीदवारों ने चुनावी मैदान में अलग-अलग पार्टियों से ताल ठोकी थी। आंकड़े बताते हैं कि इनमें से 14 ने जीत भी हासिल की थी।
Association for Democratic Reforms (ADR) से मिली जानकारी के मुताबिक, 2012 विधानसभा में 456 उम्मीदवार चुनावी रण में थे। इन कैंडिडेट्स में कुल 68 ऐसे कैंडिडेट थे जिन पर क्रिमिनल केस दर्ज थे, जबकि इन 68 में से 29 पर सीरियस क्रिमिनल केस दर्ज थे। इनमें अधिकतर कांग्रेस के 13 कैंडिडेट, सीपीएम के 9, बीजेपी के 6, IND के 10, HLP के 8, CPI के 5, NCP के 2, LJP का 1, SP का एक, SHS का 1 और AITC का एक कैंडिडेट थे।
इन सभी उम्मीदवारों में कुल 14 लोगों ने जीत हासिल की थी, जिनमें कांग्रेस के 10 विधायकों शामिल थे। सिरीयस केस लगने बावजूद भी जीत हासिल करने वाले में डलहौजी कांग्रेस की आशा कुमारी, कुसुम्पटी कांग्रेस के अनिरूद्ध सिंह और देहरा बीजेपी के रविंद्र रवि के नाम शामिल थे। इनके अलावा अनिल कुमार, भंवर ठाकुर, नीरज भारती, राकेश कालिया, रवि ठाकुर और वीरभद्र सिंह जैसे क्रिमिनिल चार्जेज वाले नेताओं ने जीत पक्की की थी।
2012 की बात की जाए तो कांग्रेस के पास सबसे ज्यादा क्रिमिनल चार्ज वाले नेताओं ने चुनाव लड़ा और जीता भी। ऐसे में 2017 विधानसभा चुनाव भी काफी अहम है। देखना होगा कि इस बार के विधानसभा चुनाव में क्रमिनिल चार्ज वाले उम्मीदवारों को दूर रखा जाएगा या पिछली बार की तरह इस बार भी चुनावी मैदान में ताल ठोकने की हरी झंडी मिलेगी।