सिरमौर जिले के गिरिपार इलाके में में आज भी सदियों पुरानी अनूठी परंपरा का निर्वहन हो रहा है। यहां के अधिकांश गांवों में बूढ़ी दीपावली मनाई जाती है। 14 वर्ष का वनवास पूरा होने के बाद सीताजी बहु बनकर घर आई थी तो ग्रामीण इलाकों में नई दीपावली मनाई गई। तब महालक्ष्मी के रूप में उनका अयोध्या में बूढ़ी महिलाओं ने जोरदार स्वागत किया था। लेकिन एक माह बाद अमावस्या के दिन बहुओं ने बूढ़ी महिलाओं को वही मान-सम्मान वापस दिया। उन्होंने सास की आरती उतारी। राम और सीता को जयमाला पहनाई। उसी याद में बूढ़ी दीपावली मनाई जाती है।
गिरिपार में 16 नवंबर से दीपावली का पर्व आरंभ होगा। पहली रात को छोटी दीपावली और दूसरी रात को बड़ी दिपावली होगी। तीसरे दिन 'भिउंरी' और चौथे दिन 'जंदूई' रहेगी। भिउंरी में उसी गांव की ब्याही हुई महिलाएं मायके पक्ष में नाच गाना करती हैं। जबकि 'जंदूई' में पुरुष ऐतिहासिक महत्व की लोकगाथाएं गाते हैं। शुरू की दो रातों के दौरान मशाल जलाई जाएगी।
इसे सुबह तक जलाए रखा जाएगा। इन्हें स्थानीय भाषा में 'डाव' कहा जाता है। इसे चीड़ की टहनियों को चीर कर तैयार किया जाता है। पटाखों का इस्तेमाल काफी कम होता है। रात को लोक वाद्ययंत्रों की थाप पर नाटियों का दौर चलता है। नाटियों में महिलाएं भी भाग लेती हैं लेकिन मशाल जुलूस से उन्हें दूर रखा जाता है।