सीटू राज्य कमेटी ने हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश में काम के घण्टों को 8 से बढ़ाकर 12 घण्टे करने के निर्णय की कड़ी निंदा की है। सीटू ने इसे मजदूरों के अधिकारों पर कठोर प्रहार करने वाला कदम करार दिया है। सीटू ने प्रदेश सरकार को चेताया है कि वह पूंजीपतियों औऱ उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए मजदूर विरोधी नीतियां बनाना बन्द करे, अन्यथा वह मजदूर आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार रहे।
इस फैसले के निर्णय के बाद प्रदेश में सीटू के नेतृत्व में 14 मई को मजदूर प्रदेशव्यापी प्रदर्शन करेंगे। कोरोना महामारी और लॉक डाउन के दौर में मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित-पीड़ित हैं। ऐसे समय में प्रदेश की भाजपा सरकार का यह मजदूर विरोधी कदम पूरी तरह से मानवता विरोधी है। प्रदेश सरकार पर पूंजीपतिपरस्त होने का आरोप लगाया है। यह सरकार पूरी तरह से मजदूरों के खिलाफ काम कर रही है। प्रदेश सरकार ने फैक्ट्रीज एक्ट-1948 की धारा 51, धारा 54, धारा 55 और धारा 56 में बदलाव करके साप्ताहिक तथा दैनिक काम के घण्टों, विश्राम की अवधि और स्प्रैड आवर्ज़ में बदलाव कर दिया है।
काम के घण्टों को आठ से बढ़ाकर बारह घण्टे करने के मजदूर विरोधी कदम ने इस सरकार की पोल खोल कर रख दी है। सरकार के इस कदम ने मजदूरों पर कई प्रकार के हमलों का दरवाजा खोल दिया है। इस निर्णय के कारण फैक्ट्रियों में कार्यरत लगभग एक तिहाई मजदूरों की छंटनी होना तय है। अभी 8 घण्टे की डयूटी के कारण फैक्ट्रियों में तीन शिफ्ट का काम होता है। बारह 12 की डयूटी से काम करने की शिफ्टों की संख्या तीन से घटकर 2 रह जाएगी। इस निर्णय ने प्रदेश में हज़ारों मजदूरों की छंटनी के दरवाजे खोल दिए हैं।
सीटू ने कहा कि यूरोप सहित दुनिया के अन्य कई देशों में मजदूर कुल 6 घण्टे के कार्यदिवस की लड़ाई लड़ रहे हैं और भारत के कई राज्यों में सरकारी अधिसूचना के माध्यम से मजदूरों पर 12 घण्टे का कार्यदिवस थोप दिया गया है। वर्तमान में प्रदेश के ज़्यादातर उद्योगों में न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 और वेतन भुगतान अधिनियम 1936 को पहले ही लागू नहीं किया जाता है। सरकार के इस कदम से मजदूरों का शोषण और तेज़ होगा।