राज्य सरकारें हेल्थ के क्षेत्र में जिस तरह से खर्च कर रही है उससे लोगों की जेब पर भार बढ़ता जा रहा है। हिमाचल में जहां सरकार ने 2000 रूपए प्रति व्यक्ति खर्च किया है वहीं बिहार में सरकार का हेल्थ में योगदान न के समान है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की नेशनल हेल्थ अकाउंट 2014-15 की रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल के लोगों ने आधे से ज्यादा हेल्थ का खर्च खुद की जेब किया जबकि बिहार के लोगों को अपनी जेब से 82 फिसदी देना पड़ा। जो कि सभी राज्यों से सबसे ज्यादा है। लोगों की हेल्थ पर कुल औसत खर्च दो-तिहाई से कम था। इस तरह सरकार की राज्यों में हेल्थ पर खर्च पर भिन्नता लोगों पर अलग-अलग असर डाला है।
रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने आंध्रा प्रदेश में सबसे कम हेल्थ पर खर्च किया। जो केवल 15.4 फिसदी रहा जिससे लोगों के कंधो पर 78% फिसदी का बोझ पड़ा। बिहार में सरकार का हेल्थ शेयर 16.5 फिसदी रहा। वहीं पंजाब राज्य, जिसे सबसे खुशहाल और उन्नति वाला राज्य माना जाता है, सरकार का हेल्थ में कुल खर्च सिर्फ 17 फिसदी रहा और लोगों पर 79.3 प्रतिशत का आर्थिक बोझ झेलना पड़ा।
सरकार के कुल हेल्थ पर कम खर्च के वाबजुद, कहीं लोगों का हेल्थ पर खर्च कम है। क्योंकि कुल खर्च में प्राइवेट इंश्योरेंस, NGO, बाहरी डोनर को भी शामिल किया है। महाराष्ट्र में सरकार केवल सरकार का हेल्थ में कुल खर्च सिर्फ 17 फिसदी है, जिसमें लोगों का शेयर 60 फिसदी है और बाकि का 27 फिसदी इंश्योरेंस में जाता है। तो बाकि का पैसा कहां जा रहा है?
नेशनल हेल्थ अकाउंट के मुताबिक, कुल हेल्थ के खर्च में प्राइवेट हॉस्पिटल (26%) और प्राइवेट क्लीनिक (5%) तीसरा सबसे बड़ा शेयर था, उसके बाद 29% फार्मेसी का है। सरकारी हॉस्पिटल और क्लीनिक का शेयर सिर्फ 20% था। डाइग्नोज लैब और पेसेंट ट्रांसपोर्ट 5% का शेयर, इनपेसेंट केयर 35%, आउट पेसेंट 16% और मेडिसीन, मेडिकल प्रोडक्ट का 30% शेयर था। रिपोर्ट में सामने आया है कि प्रीवेंटीव हेल्थकेयर में कुल खर्च 5.3% था।