आर्थराइटिस कोई बीमारी नहीं है, बल्कि जोड़ों में सूजन, उनके घिसने की समस्या है। कई सारे आर्थराइटिस से पीड़ित मरीज पीड़ादायक और सीमित जिंदगी जीते हैं, जिसकी वजह से वह सर्जरी के विकल्प को अपनाने से बचते रहते हैं, इसलिए घुटनों की सर्जरी से जुड़े डर को समाप्त करने की जरूरत है।
इसी विषय पर फोर्टिस अस्पताल कांगड़ा के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ पीवी कैले ने बताया कि घुटना रिप्लेसमेंट सर्जरी के लिए उम्र की कोई बाध्यता नहीं है। इसमें उम्र नहीं बल्कि चलना-फिरना मायने रखता है। रह्यूमेटॉइड आर्थराइटिस के मरीज को बहुत ही कम उम्र में घुटने बदलने की जरूरत पड़ सकती है, जबकि ऑस्टियोआर्थराइटिस के मरीजों को इसे अधिक उम्र में लगभग 15 साल बाद करवाने की जरूरत पड़ती है।
उन्होंने कहा कि पूरे देष में लगभग 4.5 से 5 करोड़ लोग आर्थराइटिस की समस्या से जूझ रहे हैं, लेकिन उनमें से लगभग 5 लाख लोगों को जीवन में कभी न कभी घुटनों की सर्जरी या फिर टोटल नी रिप्लेसमेंट (टीकेआर) की जरूरत होती है। यदि मरीज के घुटनों के दर्द की वजह से चलना-फिरना सीमित हो गया है और वह अपनी दैनिक गतिविधियों को अच्छी तरह से नहीं कर पा रहे हैं, जैसे कि सीढ़ियां चढ़ना, सैर पर जाना, तो उन्हें घुटना रिप्लेसमेंट करवा लेना चाहिए।
डॉ कैले ने कहा कि यदि कोई मरीज एक या दो किलोमीटर भी नहीं चल सकता और उसके एक्सरे में भी दिक्कत नजर आती है, तो बेहतर होगा कि सर्जरी करा ली जाए। वैज्ञानिक उन्नति होने से जॉइंट इम्प्लांट्स में काफी बदलाव आ गए हैं और ये 20 से 25 सालों तक चलते हैं। 55 साल से अधिक उम्र के लोग जो टीकेआर करवाते हैं उन्हें अपने जीवनकाल में शायद ही दूसरी सर्जरी करवाने की नौबत आती है। एक बार मरीज के जोड़ पूर्ण रूप से ठीक हो जाएं, तब वह सर्जरी के भरपूर फायदे प्राप्त कर सकता है। जैसे कि गतिषीलता और घूमना-फिरना बढ़ जाना, टेड़ेपन का दूर हो जाना, जीवन की गुणवत्ता बढ़ जाना और सामान्य गतिविधियों को करने की क्षमता प्राप्त करना।
डॉ कैले ने कहा कि दौड़ना, कूदना, जोगिंग या अधिक बल वाले कार्य आदि इसमें वर्जित हैं, लेकिन आप गोल्फ खेल सकते हैं, टहल सकते हैं, तैर सकते हैं और वे खेल जिनमें कम बल लगता हो, खेल सकते हैं।