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कांग्रेस दो नगर निगम जीत कर हिमाचल में जीवंत, मंडी ने बचाई मुख्यमंत्री की लाज़

पी. चंद, शिमला |

चार नगर निगमों के चुनावी परिणामों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि हिमाचल का ख़ामोश मतदाता चुनावों में ही जबाब देता है। चुनावी परिणाम भले ही भाजपा के मुक़ाबले कांग्रेस के लिए सुकून पहुंचाने वाले हैं। लेकिन कांग्रेस को इन चुनावों से सबक लेने की जरूरत है। क्योंकि कांग्रेस भी जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरी है। कांग्रेस को इसलिए भी खुश होने की जरूरत नहीं है कि क्योंकि कांग्रेस ने भी अपने पूर्ण बहुमत वाली धर्मशाला को  गंवाया है।

धर्मशाला में जो निर्दलीय जीते उनमें से भी अधिकतर कांग्रेस के बागी है। जिनको सुधीर शर्मा के कहने पर पार्टी ने टिकेट नहीं दी। अब पेंच फंस गया है इनमें से एक जीती प्रत्याशी को तो कांग्रेस ने 6 साल के लिए निष्काषित भी किया है ऐसे में क्या ये जिताऊ उम्मीदवार कांग्रेस का साथ देंगे? धर्मशाला में भाजपा कांग्रेस के हाथ से सत्ता शायद छीन चुकी है। धर्मशाला को स्मार्ट सिटी दिलवाने वाले सुधीर शर्मा कांग्रेस के लिए सिर्फ 5 सीट ही जितवा पाएं उनमें से भी उनके समर्थक कम हैं।

उधर सत्ताधारी भाजपा की चुनावों में जो दुर्गति हुई है उसके सरकार की किरकिरी होगी। क्योंकि अभी तक भाजपा ने इस कार्यकाल में हिमाचल में कोई चुनाव इतनी बुरी तरह नहीं हारा था। भाजपा के मुक़ाबले कांग्रेस में अनुशासन हीनता कम है। कांग्रेस की गुटबाज़ी किसी से छुपी नहीं है। नेता एक दूसरे को नीचा दिखाने को होड़ में रहते हैं। बावजूद इसके जनता ने अन्य विकल्प के अभाव में कांग्रेस को जिताया तो भाजपा के लिए आत्मचिंतन का समय है।

कंही भाजपा सत्ता के नशे में जनता के हितों को पीछे तो नहीं छोड़ रही है? मंडी ने भले ही मुख्यमंत्री की लाज़ बचा ली हो लेकिन नतीजे किसी भी लिहाज़ से भाजपा के पक्ष में नही रहे है। प्रदेश के सबसे बड़े ज़िले में भाजपा का ग्राफ इस तरफ से गिरना 2022 के चुनावों में मुश्किलें खड़ा करने वाला हो सकता है। सोलन के परिणामों ने ये जता दिया है कि अब ऊपरी हिमाचल में भी सरकार की साख गिर चुकी है। ऐसे में भाजपा को आत्मचिंतन तो कांग्रेस पार्टी को पार्टी में मंथन की ज़रूरत है।