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शिमला: छात्र अभिभावक मंच ने दयानंद पब्लिक स्कूल पर लगाया शिक्षा विभाग को गुमराह करने का आरोप

पी. चंद |

छात्र अभिभावक मंच ने दयानंद पब्लिक स्कूल पर शिक्षा विभाग को गुमराह करने का आरोप लगाया है। मंच ने शिक्षा विभाग से मांग की है कि वह दयानंद स्कूल पर शिक्षा विभाग को गुमराह करने पर कड़ी कार्रवाई करे। मंच ने चेताया है कि अगर शिक्षा विभाग ने दयानंद स्कूल पर कार्रवाई न की तो मंच शिक्षा विभाग के खिलाफ मोर्चा खोलेगा। मंच ने इस मुद्दे पर 18 जून को शिक्षा निदेशालय के बाहर प्रदर्शन करने का निर्णय लिया है।

मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि दयानंद स्कूल ने शिक्षा निदेशक के पत्र के जबाव में जो उत्तर दिया है, वह झूठ का पुलिन्दा है व शिक्षा विभाग को गुमराह करने वाला कदम है। दयानंद स्कूल को शिक्षा विभाग ने जबाव देने के लिए पांच दिन का समय दिया था परन्तु स्कूल ने जबाव नहीं दिया। इसके बाद मंच की मांग पर शिक्षा विभाग ने दोबारा से पत्र भेज कर जबाव मांगा जिसके बाद ही डेढ़ महीने के बाद स्कूल प्रबंधन ने जबाव दिया।

विजेंद्र मेहरा ने दयानंद स्कूल प्रबंधन के उस तर्क पर गम्भीर सवाल खड़ा किये हैं जिसमें उसने कहा है कि फीस वृद्धि पर पीटीए से सहमति ली गयी है। उन्होंने पूछा है कि जब अभिभावकों का जनरल हाउस ही नहीं हुआ तो पीटीए कब,कैसे और कहां बनी। उन्होंने स्कूल प्रबंधन को चुनौती दी है कि वह अगर उसने सच में ही पीटीए का गठन किया है तो वह पीटीए के गठन के लिए अभिभावकों को भेजे गए पत्र को सार्वजनिक करे। 

उन्होंने कहा है कि स्कूल प्रबंधन पीटीए गठन वाले दिन के जनरल हाउस की कार्यवाही रजिस्टर को सार्वजनिक करे। उन्होंने कहा है कि स्कूल में कोई भी पीटीए नहीं बनी है व यह डम्मी पीटीए है। यह पीटीए अभिभावकों की अनुपस्थिति में स्कूल प्रिंसिपल के कार्यालय में बनी है जो वास्तव में अभिभावकों की पीटीए नहीं है बल्कि स्कूल प्रबंधन की पिछलग्गू पीटीए है। यह पीटीए शिक्षा निदेशक के वर्ष 2019 के निर्देशानुसार नहीं बनी है व यह पूर्णतः अमान्य है व अभिभावकों को मंजूर नहीं है। वैसे भी शिक्षा निदेशक ने 5 दिसम्बर 2019 को फीसों की बढ़ोतरी के संदर्भ में जो अधिसूचना जारी की है, उसमें केवल अभिभावकों के जनरल हाउस को ही फीसों के संदर्भ में निर्णय लेने की शक्ति दी गयी है व पीटीए को ऐसी को भी शक्ति नहीं दी गयी है। स्कूल प्रबंधन शिक्षा विभाग को यह कह कर गुमराह कर रहा है कि उसने केवल छः प्रतिशत वृद्धि की है जबकि स्कूल ने पचास प्रतिशत तक फीस वृद्धि की है। स्कूल ने जान बूझ कर यह पचास प्रतिशत वृद्धि टयूशन फीस में की है ताकि टयूशन फीस वसूली में ही स्कूल ज़्यादातर फीस वसूल सके। यह अनैतिक है व आर्थिक भ्रष्टाचार है।