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हिमाचल की इस खिलाड़ी ने कबड्डी में दर्ज की रिकॉर्ड-तोड़ जीत

नवनीत बत्ता |

हिमाचल की खिलाड़ी रजिंदर कौर ने कबड्डी में रिकॉर्ड-तोड़ जीत दर्ज की है। रजिंदर ने राष्ट्रीय स्तर पर 19 बार खेलों में भाग लिया है और इसके साथ ही 11 मेडल उन्होंने प्राप्त किये हैं। इस दौरान रजिंदर ने समाचार फर्स्ट से कहा कि उनका ये सफर जिला सोलन के एक छोटे से गांव दभोटा से 2005 में शुरू हुआ था। हमारे इलाके में ज्यादातर कबड्डी के मैच हुआ करते थे और उनको देखने के लिए उनका एक शौक हुआ करता था।

नवमी में मैंने कबड्डी खेलना शुरू किया और 2006 में पोस्ट होटल हॉस्टल बिलासपुर मैं मेरी सिलेक्शन हो गई और आगे की पढ़ाई मैंने बिलासपुर में की। इसके साथ ही मैंने कबड्डी में मेरी और रुचि बढ़ गई तथा यहां मेरे कोट रतन लाल ठाकुर ने बहुत साथ दिया। मैंने राष्ट्रीय स्तर के लिए 19 बार अपनी टीम का नेतृत्व किया और 11 बार हिमाचल प्रदेश को मेडल दिलवाया है।

घरवालों से मिला पूरा सहयोग

रजिंदर कौर ने बताया कि बचपन में मेरे पिताजी की मृत्यु मेरे छोटे होते ही हो गई थी। उसके बाद मैं अपनी मां के साथ रही और घर से मुझे भरपूर सहयोग मिला। इसके साथ ही मेरे रिश्तेदारों ने भी मेरा पूरा साथ दिया। मुझे अपनी माता पर सबसे ज्यादा गर्व महसूस होता है। इसके अलावा स्कूल से भी बहुत सहयोग मिला, जिसमें मेरे अध्यापकों ने बहुत सहयोग दिया।

'पढ़ाई के साथ खेलकूद भी है जरूरी'

रजिंदर ने कहा कि हर किसी को पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भाग लेना चाहिए, इसके लिए कई कठिनाइंयों का भी सामना करना पड़ता है। लेकिन अच्छी एजुकेशन होने के साथ-साथ खेलकूद भी जरुरी होती है। खेलकूद के लिए खिलाड़ी को सुबह और शाम को रिहर्सल करनी पड़ती है। पढ़ाई के लिए भी समय निकालना पड़ता है, क्योंकि खेलकूद के साथ एक अच्छी एजुकेशन होना भी जरूरी है।

रजिंदर ने कहा कि सरकार ने 2017 अप्रैल को उन्हें कॉपरेटिव सोसायटी में इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त किया था। हिमाचल सरकार ने खिलाड़ियों के लिए उच्च रैंक दिए जा रहे हैं। कभी भी ऐसा नहीं होता कि लड़कियां लड़कों से कम होती हैं वह हर एक तरह के क्षेत्र में सबसे आगे देखी जा सकती हैं। ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जो कि लड़कियां नहीं कर पाएं। खेल के क्षेत्र में महिलाएं भी पुरुषों के बराबर आगे निकल रही हैं।

घर में मां और 4 भाई-बहन

रजिंदर ने बताया कि घर में चार भाई-बहन हैं। पिता की मृत्यु के बाद माता गुरचरण ने हमें बड़ी मेहनत से पढ़ाया-लिखाया है। इसके साथ ही मेरे चाचा जी भूपेंद्र सिंह राणा ने मेरे लिए अहम भूमिका निभाई है।