मंडी: हिमाचल सांस्कृतिक शोध संस्थान ने नाट्य रंगमंडल के कलाकारों की ओर से हिंदी के वरिष्ठ कहानीकार योगेश्वर शर्मा दो कहानियों मंडकू का ढाबा और भूत का सफलतापूर्वक मंचन किया गया. अकादमी की सचिव सीमा शर्मा ने बताया कि योगेश्वर शर्मा अपनी रचनाओं में पूरी तरह से रच बस जाते हैं और उसके हर शब्द में वे अपनी गहरी संवेदना और ईमानदारी बरतते हैं. जो इनकी कहानियों के जरिए सटीक बैठती है.
गागर में सागर भरने का मुहावरा इनके लेखन में चरितार्थ होता है. इसी कड़ी में मंडकू का ढाबा कारोना काल में हुए मानवीय संवेदनाओं की शून्यता को दर्शाता है. जिसमें मंडकू अपने दादा-परदादा के समय से जलेबियां बनाने का काम कर रहा है, लेकिन वैश्विक महामारी के चलते उसका सब कुछ नष्ट हो जाता है. कहानी के जरिए एक नई पीढ़ी इस तरह से इस महामारी की चपेट में आ जाती है. यह कहानी उसका सजीव चित्रण है जो एक कहानीकार के अंतर्मन की व्यथा को दर्शाता है.
वहीं उनकी दूसरी कहानी भूत जो एक डर की अभिव्यक्ति है। जिसे मंडयाली बोली में डड्डा कह कर संबोधित किया जाता है. भूत क्या है और आदमी क्या, जबकि दोनों जातिवाचक संज्ञा हैं. जहां धीरे-धीरे यह ज्ञान हो जाना कि अब भूतों से डर नहीं लगता, क्योंकि वे किसी बेसहारा निर्बल को जानबूझकर डराते नहीं. उनकी भी मर्यादा ही होती है. कहानी समाज को एक बहुत बड़ा दृष्टांत देने में सक्षम है, जहां आत्मज्ञान का बोध होता है. दोनों कहानियां योगेश्वर शर्मा की रचनाधर्मिता के प्रति समर्पित हैं, प्रतिबंध हैं और समस्त पूर्वाग्रहों से परे है. इन कहानियों का निर्देशन अयान दास गुप्ता की ओर से किया गया. कहानी मंचन का संयोजन सीमा शर्मा ने किया. वहीं, कहानी के पात्रों में नीरज, देव, अखंड, राहुल, विवेक, ध्रुव, अभय, आलोक, ओमकार, निलेश, देवांग, मधुसूदन, फ्रेंडी सब कलाकारों ने सराहनीय कार्य किया.