हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार भांग की खेती को लीगल कर सकती है. प्रदेश में बढ़ रहे कर्ज के बोझ को उतारने के लिए भांग की खेती से सालाना 18,000 करोड़ रुपये आ सकते हैं.
एनडीपीएस अधिनियम, 1985 के तहत भांग की खेती, उत्पादन, रखरखाव का प्रावधान हैं. हिमाचल भांग की खेती को वैध बनाने वाला पहला राज्य नहीं होगा. पड़ोसी राज्य उत्तराखंड ने 2017 उसके बाद मध्य प्रदेश भी भांग खेती को लीगल कर चुका है.
हिमाचल सरकार में CPS सुंदर ठाकुर हिमाचल में भांग की खेती लीगल करने की मांग करते रहे हैं. अब खुद सरकार में हैं ऐसे में उनका कहना है कि वह इसकी लडाई लड़ते रहें हैं. अब नशे के लिए नहीं बल्कि दवाई व अन्य चीजों के लिए भांग लीगल होनी चाहिए.
क्योंकि कैंसर जैसे रोगों के लिए भांग का दवाई के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. न्यायालय ने जय राम सरकार को दो बार कहा कि इसको लेकर नीति बनाएं. लेकिन पिछली सरकार इसको लीगल नही कर पाई. कांग्रेस सरकार नीति को लेकर गंभीर है. जल्द ही भांग की खेती को लीगल किया जायेगा.
प्रदेश में अनुमानित 2,400 एकड़ में भांग की संगठित अवैध खेती हो रही है. राज्य से हर साल 960 करोड़ रुपये मूल्य की चरस की तस्करी की जाती है और इसे पश्चिमी यूरोपीय और स्कैंडिनेवियाई देशों में भेजा जाता है. जबकि इज़राइल में मलाणा क्रीम की मांग है. शिमला, चंबा और सिरमौर जिलों में उगाई जाने वाली निम्न गुणवत्ता वाली अवैध चरस का राजस्थान में एक बाजार है.
परंपरागत रूप से, गांजा पुराने हिमाचल के कुछ हिस्सों में उगाया जाता था. जिसमें शिमला, मंडी, कुल्लू, चंबा और सिरमौर शामिल थे. इसके रेशे से टोकरियां, रस्सी और चप्पलें बनाई जाती थीं और इसके बीजों का उपयोग पारंपरिक खाना पकाने में किया जाता था.
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