<p>मंडी जिला के मशहूर तीर्थ स्थलों कमरूनाग और पराशर झील परिसर में इस बार कोरोना संकट के चलते सरानाहुली मेलों का आयोजन नहीं हो पाया। प्रशासन की ओर से इस बार इन मेलों के आयोजन पर रोक लगाने की वजह से पुलिस ने श्रद्धालुओं को इन तीर्थ स्थलों की ओर जाने से रोक दिया। जिले की उतरसाल पर्वतमाला पर पराशर और कमरूघाटी में देव कमरूनाग झील जो अलग अलग क्षेत्रों में समुद्रतल से 9 हजार फीट की उंचाई पर स्थित हैं को जाने वाले सभी रास्तों को पुलिस प्रशासन ने सील कर दिया था। भले ही पिछले कई दिनों से लोग पैदल रास्तों से होकर इन अराध्य स्थलों में जाकर हाजिरी भर आए हैं और देव समिति के साथ साथ अन्य देवलु और श्रद्धालु जैसे तैसे रविवार को भी यहां पर पहुंच गए थे। आषाढ़ संक्रांति को मंडी जनपद में बकरयाला साजे के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मंडी जनपद के हर घर में मीठे पकवान के रूप में आटे के बकरू और पराक जिनमें मेवे भरे जाते हैं बनाए जाते हैं। इस दिन मंडी जनपद के दो मशहूर तीर्थ स्थलों पराशर झील और कमरूनाग में सरानाहुली मेलों का आयोजन होता है।</p>
<p>पांडवों के ठाकुर के रुप में पूज्य कमरुदेव जी मंडी जनपद के अराध्य देव हैं। मंडी और सुकेत रियासत के सबसे बड़े तीर्थ सरानाहुली को प्राचीनता की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। आषाढ़ संक्रांति को इस स्थान पर लगने वाले सरानाहुली मेले में 40.50 हजार श्रद्धालु इस स्थल पर पहुंचकर अपनी मन्नौतियां कमरुदेव के श्री विग्रह के आगे अर्पित करने के बाद झील में नाग रुप में विराजमान कमरुनाग को भी सोने.चांदी के आभूषण और नकदी अर्पित कर स्वयं को धन्य मानते हैं। अरबों रुपये की धन संपदा इस झील के गर्भ में संचित हुई है। संस्कृति मर्मज्ञ डॉक्टर जगदीश शर्मा और कमरुदेव कमेटी के पूर्व कटवाल निर्मल सिंह ठाकुर का कहना है जिस प्रकार अरबों रुपए की धन संपति कमरुनाग झील में अर्पित की जाती है । इसे देखकर 1911 में अंग्रेज अधिकारी गावर्ट ने इस विशिष्ट परंपरा को अनुचित मानकर उसने झील का पानी निकालने का निर्देश दिया तथा झील में मन्नौतियों के संकल्प के रुप में समर्पित सोने.चांदी के आभूषण और नकदी रुपए निकाल कर सरकारी कोष में जमा करवाने के निर्देश दिए। कहते हैं कि कमरुदेव के पुजारियों, कारदारों ने अंग्रेज अधिकारी को ऐसा करने से रोका। लेकिन अंग्रेज अधिकारी ने लोगों की इस धार्मिक मान्यता को अंधविश्वास कहकर अपनी आज्ञा को व्यवहारिकता प्रदान करने पर तुल गया।जैसे ही गावर्ट के निर्देशानुसार कमरुनाग झील में दबी धन.संपदा को निकालने का कार्य शुरू हुआ,अंग्रेज अधिकारी बीमार हो गया। बाद में अंग्रेज अधिकारी गावर्ट ने लोगों की बात मान ली तथा झील में छिपी हुई धन संपदा को निकलवाने का कार्य बंद करवा दिया। गावर्ट देव कमरुदेव के आगे नतमस्तक होकर क्षमा याचना मांगने के बाद ब्रिटिश सेवा से त्यागपत्र देकर इंग्लैंड चला गया। कमरुदेव जी के ऐसे अनेकों चमत्कारों को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। इस वर्ष कोरोना के विश्वव्यापीअनियंत्रित संक्रमण के करण कमरुनाग जी का वार्षिक उत्सव नहीं हुआ। आषाढ़ संक्रांति व बकरयाला साजे के पावन अवसर पर श्रद्धालुओं ने अपने घरों में ही पूजा स्थल में कमरुदेव की प्रतिमा के आगे एक परात में पानी भरकर सरानाहुली झील बनाकर इसमें पठावा देवदार के परागकण, पुष्पए सिक्के अर्पित कर आटे से बनाए बकरे की बलि देकर विधिवत कमरुदेव जी पूजा अर्चना कर शुभ आशीर्वाद प्राप्त कर स्वयं को धन्य किया तथा कोरोना संग्रमण से विश्व मुक्ति की प्रार्थना की।</p>
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