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हिंदी और हिमाचली भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. पीयूष गुलेरी का निधन

मृत्युंजय पूरी, धर्मशाला |

पहाड़ी कविता और गज़ल के सशक्त लेखक डॉ. पीयूष गुलेरी के निधन के साथ हिमाचली साहित्य के एक युग का अंत हो गया। 78 वर्षीय पीयूष पिछ्ले कुछ समय से बीमार थे। उन्होंने शुक्रवार रात करीब 2.50 बजे धर्मशाला के चीलगाड़ी स्थित अपने आवास पर अन्तिम सांस ली। उनके निधन की खबर मिलते ही साहित्य प्रेमियों में शोक की लहर दौड़ गई। पहाड़ी कविता और गज़ल में नए प्रयोग करने के अलावा डॉ. गुलेरी को हिन्दी के महान कहानीकार पं. चंद्रधर शर्मा गुलेरी के लेखन पर किये गहन शोध कार्य के लिये साहित्य जगत में खूब सराहना मिली। वह उत्कृष्ट लेखन कार्य के लिये राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के अनेक पुरस्कारों से नवाजे गए थे।

कांगड़ा ज़िला के सभी मंत्रियों किशन कपूर, सरवीन चौधरी, विपिन परमार, बिक्रम ठाकुर सहित सभी विधायकों ने डॉ. पीयूष गुलेरी के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि पहाड़ी भाषा एवं साहित्य में उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने भगवान से दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करने की प्रार्थना की।
कांगड़ा ज़िला प्रशासन, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग एवं भाषा कला विभाग के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों ने डॉ. गुलेरी के निधन पर गहरा दुख जताकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि डॉ. पीयूष गुलेरी का जाना हिन्दी-पहाड़ी साहित्य के लिये अपूर्णीय क्षति है।

बता दें कि डा. पीयूष गुलेरी हिंदी और हिमाचली भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। डॉ. गुलेरी ने आधुनिक हिमाचली भाषा को साहित्यिक स्वरूप देने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने सन् 1969 में ‘मेरा देश म्हाचल’ शीर्षक से काव्य-संग्रह प्रकाशित करवाकर राज्य में साहित्यिक प्रसरण में अनुकरणीय योगदान दिया। पीयूष गुलेरी का मूल नाम कृष्ण गोपाल था। उनके साहित्यिक गुरु सोमनाथ सिंह ने उन्हें पीयूष उपनाम दिया।

पीयूष गुलेरी का जन्म 14 अप्रैल 1940 में साहित्य एवं चित्रकला के लिए विख्यात कांगड़ा के गुलेर गांव में हुआ था। राजपुरोहित पिता पंडित कीर्तिधर शर्मा गुलेरी एवं माता सत्यवती गुलेरी के घर में जन्मे पीयूष गुलेरी ने राजा हरिश्चंद्र सनातन धर्म हाई स्कूल में दसवीं की परीक्षा सन् 1955 में पास की थी। इसके बाद व्यक्तिगत रूप से अध्ययन करके भूषण, प्रभाकर, बीए, एमए और बीएड तक की उपाधियां पंजाब से प्राप्त की। प्रसिद्ध साहित्यकार शिक्षक डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा एवं पद्म सिंह शर्मा के कुशल निर्देशन में कुरुक्षेत्र महाविद्यालय में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी।