सीएंडवी शिक्षक जिन्हें अब टीजीटी संस्कृत और हिंदी नाम से जाना जाता है, उन्हें हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है। अदालत ने इन्हें टीजीटी पद का वेतनमान दिए जाने के आदेश दिए हैं।
इसके अलावा अदालत ने टीजीटी की वरीयता को प्रवक्ता पद के लिए गिने जाने के आदेश दिए हैं। न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ ने 230 याचिकाओं का निपटारा करते हुए यह निर्णय सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं को यह लाभ 20 अगस्त, 2022 से दिया जाएगा।
इस तिथि से सरकार ने अधिसूचना जारी कर सीएंडवी शिक्षकों को टीजीटी संस्कृत और हिंदी का पदनाम दिया था। अदालत के समक्ष दलील दी गई थी कि पदों के नामकरण में बदलाव के बावजूद उच्चतर योग्यता वाले शास्त्री और भाषा शिक्षकों को टीजीटी (संस्कृत) और टीजीटी (हिंदी) का दर्जा उनकी अपनी वेतन संरचना में दिया था।
अदालत को बताया गया था कि टीजीटी पद का नामकरण न केवल इस पद के वेतनमान के लिए याचिकाकर्ताओं को योग्य बनाता है, बल्कि उन्हें प्रवक्ता पद के लिए भी वरीयता के आधार पर पदोन्नत किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता पहले जेबीटी पद पर तैनात थे और उसके बाद वे शास्त्री और भाषा अध्यापक के रूप में पदोन्नत हुए। सरकार ने उन सभी शास्त्री और भाषा अध्यापकों को टीजीटी का पदनाम दिया जो बीएड और टेट पास थे। अदालत ने कहा कि हालांकि किसी पद के लिए वेतन निर्धारण करना राज्य का अधिकार है.
लेकिन जब एक ही तरह के कर्मचारियों के वेतनमान में विसंगति हो तो उस स्थिति में हस्तक्षेप किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि सरकार ने नीतिगत फैसले से उच्चतर योग्यता वाले शास्त्री और भाषा शिक्षकों को टीजीटी (संस्कृत) और टीजीटी (हिंदी) का दर्जा प्रदान किया है।
ऐसे में उन्हें सीएंडवी शिक्षकों का वेतनमान दिया जाना गलत है। टीजीटी (संस्कृत) और टीजीटी (हिंदी) भी उसी तरह अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हैं, जिस तरह टीजीटी मेडिकल, नॉन मेडिकल और आर्ट्स के शिक्षक करते हैं। इसलिए उन्हें टीजीटी से जुड़े वेतनमान और संबंधित वरीयता के आधार पर प्रवक्ता पद की पदोन्नति से वंचित नहीं किया जा सकता है।