➤ हाईकोर्ट ने आउटसोर्स कंप्यूटर शिक्षकों को नियमित करने का दिया आदेश
➤ 2016 से माना जाएगा नियमित, सभी लाभ मिलेंगे
➤ सरकार को 12 हफ्तों में पूरी करनी होगी कार्यवाही
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य के सरकारी स्कूलों में आउटसोर्स पर कार्यरत कंप्यूटर शिक्षकों को बड़ी राहत प्रदान की है। लंबे समय से न्याय की लड़ाई लड़ रहे इन शिक्षकों को आखिरकार अदालत से इंसाफ मिला है। न्यायाधीश सत्येन वैध ने मनोज कुमार शर्मा व अन्य की ओर से दायर याचिकाओं को स्वीकारते हुए सरकार को आदेश दिए हैं कि इन शिक्षकों को वर्ष 2016 से नियमित माना जाए और उन्हें उस समय से संबंधित सभी लाभ भी प्रदान किए जाएं।
अदालत ने शिक्षा विभाग को 12 सप्ताह के भीतर संपूर्ण कार्यवाही पूरी करने के स्पष्ट निर्देश दिए हैं। यह फैसला उन 1,300 से अधिक कंप्यूटर शिक्षकों के लिए एक बड़ा मील का पत्थर साबित होगा जो राज्यभर के सरकारी स्कूलों में आउटसोर्स के आधार पर कार्यरत हैं। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता दो दशकों से अधिक समय से कंप्यूटर शिक्षा दे रहे हैं, लेकिन राज्य सरकार की निष्क्रियता और देरी के कारण इन्हें नियमित करने की प्रक्रिया अटकी रही।
प्रदेश में आईटी शिक्षा 2001-02 से आउटसोर्स एजेंसियों के माध्यम से शुरू की गई थी। इसके बाद से कंप्यूटर शिक्षक लगातार सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन इन्हें नियमितीकरण का हक नहीं मिला। वहीं पीटीए, जीवीयू और पीएटी शिक्षकों को पहले ही नियमित किया जा चुका है। ऐसे में कंप्यूटर शिक्षक लंबे समय से समानता की मांग कर रहे थे।
2016 में राज्य सरकार ने पीजीटी (आईपी) के लिए संवर्ग बनाया और भर्ती नियमों में संशोधन करते हुए पांच वर्ष का शिक्षण अनुभव जोड़ा गया था। भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई लेकिन बाद में रद्द कर दी गई। हाल ही में 2024 में प्रवक्ता (कंप्यूटर विज्ञान) के 769 पदों के लिए नए अधियाचन भेजे गए, जिनमें अधिक आयु सीमा वाले याचिकाकर्ता शामिल नहीं हो पाए।
अब हाईकोर्ट के इस फैसले ने शिक्षकों की उम्मीदें जगाई हैं। कोर्ट ने साफ कहा है कि न्याय में देरी भी अन्याय के समान है और सरकार की लापरवाही के कारण शिक्षकों को वर्षों तक असुरक्षा में नहीं रखा जा सकता।



