शिमला की कंडा जेल से फरार हुए कैदी हिमाचल प्रदेश पुलिस के तर्क पर कई सवाल उठाता है। कैदियों के भागने के बाद पुलिस प्रशासन की थ्योरी गलत साबित होती नज़र आ रही है। दरअसल, पुलिस की थ्योरी के मुताबिक समाचार फर्स्ट ने अपने स्तर पर पुलिस की तर्क को जांचने की कोशिश की, जिसमें पुलिस की थ्योरी पूरी तरह फेल होती नजर आई है।
'समाचार फर्स्ट' की टीम ने अपने स्तर लोहे की एक रोड को साबुन लगाकर काटने की कोशिश की। लेकिन, लोहे को काटने पर उतनी ही आवाज आई जितनी की बिना साबुन के। जाहिर सी बात है जब लोहे से लोहा फ्रिक्शन में होगा तो आवाज तो आएगी ही, लेकिन साबुन आदी लगाने से ना ही फ्रिक्शन और ना ही आवाज़ पर कोई फर्क पड़ेगा। फर्क पड़ेगा तो सिर्फ लोहे की रोड फिसलने का..
वहीं, दिन के समय किए गए इस एक्सपेरिमेंट में ही आवाज इतनी गूंज रही है तो कंडा जेल में कैदियों ने तो रात के समय लोहा काटने की कार्रवाई की थी। मौका-ए-वारदात पर 13 पुलिसवाले मौजूद थे और कथित तौर 28 कैदी जेल में बंद थे। क्या उनमें से किसी भी कैदी या पुलिसवाले को लोहा काटने की ये आवाज़ नहीं सुनाई दी..?
समाचार फर्स्ट की टीम के इस एक्सपेरिमेंट के बाद ये कहना गलत नहीं होगा कि पुलिस के पास कोई ठोस जबाव नहीं होने के चलते पुलिस ने साबुन की थ्योरी अपनाई है। यही नहीं, इससे पहले भी प्रशासन अपनी छवि को साफ रखने को भरपूर कोशिश करता आया है, जिसका उदाहरण अप्रैल महीने में एक पुलिसवाले भानु प्रताप द्वारा की गई पुलिसकर्मियों की शिकायत और कुछ दिनों पहले एक शिवसेना प्रवक्ता पुलिस की कैदियों पर मेहरबानी करती है।
गौर रहे कि बुधवार को कंडा जेल से 3 कैदियों के भागने के बाद प्रशासन ने कहा था कि तीनों कैदी सरिया काटकर औऱ 16 फीट दिवार पार करके भागे हैं। दैनिक अखबार मुताबिक, प्रशासन ने कहा था कि सरिया रात के समय में ब्लेड से काटा गया था और उसे साबुन लगाकर काटा गया था ताकि उसकी आवाज ना आए। लेकिन, अपने स्तर पर जांच की जाए तो आप भी देख सकते हैं पुलिस के ऐसे तर्क कितने सही और कितने गलत..?
स्थापना दिवस से सुधार रही स्थिति
उधर, गुरुवार को पुलिस अपना पहला स्थापना दिवस मना रही है, जिसमें हिमाचल में पुलिस की स्थिति को सुधारने की बातें कही जा रही हैं। प्रशासन का कहना है कि स्थापना दिवस से पुलिस बल को नई ऊर्जा मिलेगी और प्रदेश की महिलाओं-लड़कियों को सुरक्षा के प्रति प्रशिक्षित किया जाएगा।