हिमाचली धाम जिसका नाम सुनते ही मुंह में पानी आना लाजिमी है। यह धाम देश में नहीं बल्कि पूरे विश्वभर में प्रसिद्ध है। हिमाचल में जब कोई शादी या अन्य शुभ काम किया जाता हैं तो मेहमानों के लिए तरह – तरह के पकवान बनाये जाते है, जिन्हें हम अपनी भाषा में धाम कहते है।
शादियों में बनने वाली धाम का स्वाद उस फाइव स्टार होटल में बनने वाले स्वादिष्ट पकवान को भी फेल कर देता है जो लोग हजारों रुपये देकर खाते हैं।
बहुत से लोग जब हिमाचल में आते हैं तो यहाँ की बनी हिमाचली धाम का जायका लेना नहीं भूलते।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिमाचली धाम के मुरीद है, वो कई जनसभाओं में इस बात का जिक्र कर चुके हैं।
इसके साथ ही एचपीटीडीसी के होटलों में भी हिमाचली धाम परोसी जाती है।
हिमाचलमें 12 जिले हैं और लगभग सभी जिलों में आज भी शाकाहारी पारंपरिक हिमाचली धाम को बनाया जाता है।
आज हम सबसे पहले कांगड़ी धाम की बात करेंगे।
कांगड़ा की धाम हिमाचल की तमाम धामों में शुमार है।
कांगड़ी धाम की विशेष बात ये है कि ज्यादातर धाम में परोसे जाने वाले व्यंजन दही के साथ तैयार किए जाते हैं।
कांगड़ी धाम में खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बर्तन आम तौर पर पीतल के होते हैं जिसे कांगड़ी भाषा में चरोटी या बलटोई भी कहा जाता है।
कांगड़ी धाम की एक विशेष बात ये भी है कि धाम में परोसे जाने वाले खाने को लोग ज़मीन पर बैठ कर खाते हैं।
कांगड़ी धाम को पत्तल पर परोसा जाता है जिसे स्थानीय भाषा में पतलू कहा जाता है।
इस धाम में ख़ास व्यंजनों की सूची में सबसे पहले माह उड़द साबुत, चने की दाल, मदरा, दही चना, खट्टा चने अमचूर, पनीर मटर, राजमा, सब्जी में जिमीकंद, कचालू, अरबी, सांबर मीठे में ज्यादातर बेसन की रेडीमेड बूंदी,
बदाणा या रंगीन चावल भी परोसे जाते हैं। यहां चावल के साथ पूरी भी परोसी जाती है।
मंडी की धाम
मंडयाली धाम अपने आप में एक अनूठा आहार है। इसे परोसने का तरीका भी अलग है
इसे हरी पत्तलों पर परोसा जाता है।
मंडयाली धाम में सबसे पहले बूंदी मीठा परोसा जाता है।
इसे लोकल बोली में बदाणा कहा जाता है। मंडी धाम की खासियत सेपू बड़ी है, जो बनती है बड़ी मेहनत से और खाई भी बड़े चाव से जाती है।
सेपू बड़ी के साथ कद्दू खट्टा, कोल का खट्टा, दाल और झोल परोसा जाता है।
शिमला की धाम
प्रदेश की राजधानी शिमला में सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला व्यंजन सिड्डू है।
आम तौर पर इसे देसी घी, दाल और चटनी के साथ परोसा जाता है।
सिड्डू के साथ बबरु भी सभी शुभ त्योहारों और अवसरों पर तैयार किया जाता है।
बबरू शिमला ही नहीं, बल्कि हिमाचलियों का भी पसंदीदा व्यंजन है।
सिड्डू ,बबरू पोलडू ,माह उड़द की दाल,
चने की दाल, छोटे गुलाब जामुन जैसे व्यंजन शिमला की धाम का हिस्सा हैं।
चंबा की धाम
वैसे तो हर जिले की अपनी धाम है, लेकिन चंबा जिले में बनने वाली धाम की बात ही कुछ और है।
इस धाम की शान है राजमा से बनने वाला मदरा।
प्रदेश की सभी धामों में मदरा बनाया जाता है; चने का मदरा,
आलू का मदरा और बूंदी का मदरा, लेकिन चंबयाली धाम का मदरा सबसे ज्यादा मशहूर है।
जिला चंबा में शादी और अन्य समारोह में लोगों को जो लजीज व्यंजन परोसे जाते हैं उसमें दो तरह के मदरे होते हैं।
पहला आलू वाला जो कि मीठा होता है। वहीं, दूसरा मदरा होता है राजमा का जो कि नमकीन होता है, जिसे लोग काफी पसंद करते हैं।
यहां चावल, मूंग साबुत, मदरा, माह, कढ़ी, मीठे चावल, खट्टा, मोटी सेवेइयां खाने का हिस्सा हैं।
हमीरपुर की धाम-
हमीरपुर की धाम में दालें ज्यादा परोसी जाती हैं।
हमीरपुर में मीठे में पेठा ज्यादा पसंद किया जाता है
मगर बदाणा का मीठा भी बनता है। राजमा या आलू का मदरा, चने का खट्टा व कढ़ी प्रचलित है।
ऊना की धाम
ऊना जिले के कुछ क्षेत्रों में सामूहिक भोज को धाम कहते हैं।
पहले ऊना में शादी के शुभ अवसर पर मामा की तरफ से धाम दी जाती थी। यहां पतलों के साथ डोने भी दिए जाते हैं ,
विशेषकर शक्कर या बूरा परोसने के लिए।
यहां चावल, दाल चना, राजमा खिलाए जाते हैं।
हिमाचली इलाका ऊना कभी पंजाब से हिमाचल में आया था तो यहां पंजाबी खाने-पीने का अधिक असर है।
बिलासपुर की धाम
बिलासपुर में धुली उड़द की दाल, काले चने खट्टे, तरी वाले फ्राई आलू या पालक में बने कचालू, रौंगी ,लोबिया अधिक फेमस है। इसके साथ ही मीठा बदाणा या कद्दू या घिया के मीठे का भी प्रचलन है।
कुल्लू की धाम
कुल्लू का खाना मंडीनुमा है। यहां मीठा,बदाणा या कद्दू, आलू या कचालू खट्टे,दाल राजमा, उड़द या उड़द की धुली दाल, लोबिया, सेपू बड़ी, लंबे पकौड़ों वाली कढ़ी व आखिर में मीठे चावल खिलाए जाते हैं।
सोलन की धाम
सोलन में बिलासपुरी धाम का रिवाज है। हलवा-पूरी, खूब खाए खिलाए जाते हैं। सब्जियों में आलू-गोभी या मौसमी सब्जी होती है।
मिक्स दाल और चावल आदि भी परोसे जाते हैं।
कित्रौर की धाम
हिमाचल में सबसे अलग धाम किन्नौर की मानी जाती है क्योंकि यहां पर कई सालों से मांसाहारी भोजन भी धाम में परोसा जाता है। किन्नौर की दावत में शराब व मांस का होना हर उत्सव में लाज़मी है।
इसलिए यहां बकरा कटता ही है। खाने में चावल, पूरी, हलवा, सब्जी जो उपलब्ध हो बनाई जाती है।
किन्नौर में ‘छांग देशी शराब है जो हांगरांग घाटी में मुख्यत पी जाती है।
लाहौल स्पीति की धाम
लाहौल-स्पीति में चावल, दाल चना, राजमा, सफेद चना, गोभी आलू मटर की सब्जी और एक समय भेडू, नर भेड़ का मीट कभी फ्रायड मीट दिया जाता है।
सादा रोटी या पूरी भटूरे भी परोसे जाते हैं। परोसने के लिए कांसे की थाली, शीशे या स्टील का गिलास व तरल खाद्य के लिए तीन तरह के प्याले इस्तेमाल होते हैं।
सिरमौरी धाम का पारंपरिक खाना सार्वजनिक उत्सवों व विवाहों में तो गायब ही रहता है। भीतरी ग्रामीण इलाकों में चावल, माह की दाल, जलेबी, हलवा या फिर शक्कर दी जाती है।
हिमाचली धाम की सबसे खास श्रेय यहां के बोटियों को दिया जाता है जो पीढ़ी- दर- पीढ़ी इस पेशे से जुड़े हुए हैं।
विवाह उत्सव हों या रिटायरमेंट, किसी का जन्मदिन या चौथा श्राद्ध, लोग पूरे गांव को धाम को चखने का मौका देते हैं।
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