हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग पर 10 लाख रुपए की कॉस्ट लगाई है. न्यायधीश अजय मोहन गोयल ने यह आदेश कुलविंदर सिंह नाम की याचिका की सुनवाई के बाद पारित किए. प्राथी ने याचिता में आरोप लगाया है कि उसे भूमिहीन प्रमाण पत्र देने के बावजूद भी आयोग ने उसे एक अंक नहीं दिया है. आयुर्वेद विभाग मे फार्मासिस्ट के पद के लिए चयन प्रक्रिया के दौरान यह कोताही आयोग ने बरती है. हाईकोर्ट के समक्ष लंबे समय से चल रहे इस मामले के निपटारे के लिए हाईकोर्ट ने आयोग से वांछित सहयोग न मिलने के लिए आयोग को जिम्मेदार मानते हुए यह कॉस्ट लगाई है.
याचिकाकर्ता कुलविंदर सिंह ने आयुर्वेद विभाग में फार्मासिस्ट के लिए आवेदन किया था. भूमिहीन प्रमाण पत्र में खामी निकालकर आयोग ने उसे एक अंक नहीं दिया था. याचिकाकर्ता के अंकों का मूल्यांकन 23 सितंबर, 2017 को तय किया गया था. याचिकाकर्ता की ओर से पेश किया गया भूमिहीन प्रमाण पत्र तहसीलदार अंब ने प्रति हस्ताक्षरित किया था. अधिसूचना के अनुसार भूमिहीन प्रमाण पत्र तहसीलदार ही जारी कर सकता है. आयोग ने याचिकाकर्ता को नया प्रमाण पत्र जमा करवाने के लिए सात दिन का समय दिया था.
समय पर नया प्रमाण पत्र जमा न करने पर आयोग ने याचिकाकर्ता को एक अंक से वंचित कर दिया था. अदालत ने मामले में पाया कि याचिकाकर्ता ने समय पर प्रमाण पत्र जमा कर दिया था.कोर्ट ने कहा है कि जिस तरीके से आयोग ने इस अदालत में अपना पक्ष रखा है वह वास्तव में अदालत द्वारा कोर्ट के समक्ष झूठ बोलने व वांछित सहयोग न मिलने पर आयोग पर 10 लाख रुपए की कॉस्ट लगाई, जिसे आयोग को 22 अगस्त तक जमा करवाने के आदेश जारी किए हैं.