कांगडा: माता बगलामुखी दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या हैं. इन्हें माता पीताम्बरा भी कहते हैं. सम्पूर्ण सृष्टि में जो भी तरंग है वो इन्हीं की वजह से है. यह भगवती पार्वती का उग्र स्वरूप है. ये भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करने वाली देवी है. इनकी आराधना के पूर्व हरिद्रा गणपती की आराधना अवश्य करनी चाहिये अन्यथा यह साधना पूर्ण रूप से फलीभूत नहीं हो पाती है.
वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता हैं. जिस कारण इसे मां बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है. हिंदू कैलेंडर 2023 के अनुसार, बगलामुखी जयंती का अवसर वैशाख के महीने में शुक्ल पक्ष के 8वें दिन (अष्टमी तिथि) को मनाया जाता है.
इस साल बगलामुखी जयंती 28 अप्रैल यानि कल मनाई जाएगी. पूरे विश्व में सिर्फ तीन ही मां बगलामुखी के मंदिर हैं. जो भारत के दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं. तीनों का अपना अलग-अलग महत्व है
आपतो बता दें कि हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के बनखंडी में स्थित सिद्ध शक्तिपीठ प्राचीन मां बगलामुखी का बहुत ही बड़ा मंदिर है. वहीं कल मां बगलामुखी जयंती पर इस मंदिर में माहआरती महोत्सव का आयोजन किया गया हैं. जो बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाएगा. सिद्ध शक्तिपीठ प्राचीन मां बगलामुखी धाम में महाआरती की जाएगी.
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि जो भक्त देवी बगलामुखी की पूजा करते हैं. वे अपने शत्रुओं पर सम्पूर्ण नियंत्रण पा कर उनसेस छुटकारा पा लेते हैं. देवी व्यक्ति को उसकी भावनाओं और व्यवहार पर नियंत्रण की भावना भी प्रदान करती है अर्थात् क्रोध, मन के आवेग, जीभ और खाने की आदतों पर, आत्म-साक्षात्कार और योग की प्रक्रिया में, इस तरह के नियंत्रण की महत्वपूर्ण आवश्यकता है.
यह भी माना जाता है कि देवी की पूजा करने से, भक्त खुद को काले जादू और अन्य गैर-घटनाओं से बचा सकते हैं. व्यक्ति दूसरों को सम्मोहित करने के लिए शक्तियों को प्राप्त करने के लिए भी देवता की पूजा करते हैं. किसी कानूनी समस्या से मुक्त होने के लिए भी देवता की पूजा की जाती है. जो भक्तिपूर्वक देवी की आराधना करता है, वह प्रभुत्व, वर्चस्व और शक्ति से परिपूर्ण हो जाता है.
भक्त सबसे पहले सुबह पवित्र स्नान करते हैं और फिर पीले रंग के कपड़े पहनते हैं. बगलामुखी जयंती के दिन बगलामुखी माता की पूजा करने के लिए, भक्त वेदी पर मूर्ति या देवता की मूरत रखते हैं. इसके बाद, वे अनुष्ठानों के साथ शुरुआत करने के लिए अगरबत्तियां और एक दीया जलाते हैं.
भक्त फूल, नारियल और माला के साथ देवता को तैयार किया हुआ पवित्र भोजन (प्रसाद) अर्पित करते हैं. देवी बगलामुखी की आरती की जाती है और देवता को जगाने के लिए पवित्र मंत्रों का जाप किया जाता है.
आमंत्रितों और परिवार के सदस्यों के बीच प्रसाद वितरित किया जाता है. भक्तगण देवता का दिव्य आशीर्वाद लेने के लिए बगलामुखी जयंती के दिन दान और पुण्य के कई कार्य करते हैं.
बगलामुखी जयंती के शुभ दिन, भक्त देवी बगलामुखी की पूजा और अर्चना करते हैं. छोटी लड़कियों की भी पूजा की जाती है और पवित्र भोजन उन्हें चढ़ाया जाता है. क्योंकि उन्हें देवी का अवतार माना जाता है. मंदिरों में और पूजा स्थल पर, कीर्तन और जागरण आयोजित किए जाते हैं. भक्तगण अति उत्साह और समर्पण के साथ बगलामुखी पूजा करते हैं.
शास्त्रों के अनुसार, यह माना जाता है कि एक बार भारी बाढ़ आई थी. जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी का पूर्ण विनाश हुआ था. सभी जीवित प्राणी और पूरी सृष्टि दांव पर थी. देवताओं ने तब भगवान शिव से सहायता मांगी. देवता ने सुझाव दिया कि केवल देवी शक्ति में ही तूफान को शांत करने की शक्ति है.
पृथ्वी को पीड़ा से बचाने के लिए देवी बगलामुखी हरिद्रा सरोवर से निकलीं और उन सभी को बचाया. उस दिन के बाद से, देवी बगलामुखी को विपत्तियों और बुराइयों से राहत पाने के लिए पूजा जाता है.
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