<p>मंडी जिला के बल्ह उपमंडल के मैरामसीत के एक दंपति ने मरणोपरांत मानवता के लिए अपने शरीर के समस्त अंगदान और देहदान करने का संकल्प लिया है। दानी पति-पत्नी लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल नेरचौक में जाकर देहदान की सभी औपचारिकताओं को पूरा किया है। शिक्षा विभाग में कार्यरत शास्त्री शिक्षक खेमसिंह 57 साल और उनकी पत्नी इंद्रा देवी 54 साल निवासी बल्ह मैरामसीत ने स्वयं देहदान का निर्णय लिया।</p>
<p>दंपति ने कहा कि मृत्यु के बाद हमारे शरीर के काम आने वाले अंग आंखें, गुर्दे, ब्रेन पार्ट सहित अन्य अंग जरूरतमंद, असहाय व गरीब लोगों की जान बचाने के काम आएं और उसके बाद उनके शरीर संस्थान में प्रशिक्षण करने वाले प्रशिक्षु डॉक्टरों के प्रशिक्षण में काम आए। उन्होंने कहा कि यह शरीर मृत्यु और दाह संस्कार के बाद केवल राख का ढेर मात्र रह जाता है। यदि मानव कल्याण में हमारे अंग या देह काम आए तो इससे बढ़कर सौभाग्य की बात क्या हो सकती है।</p>
<p>उन्होंने कहा कि देहदान महादान कहा जाता है। इसे महादान की श्रेणी में इसलिए रखा गया है क्योंकि मृत देह मेडिकल कॉलेज के प्रशिक्षु डॉक्टरों के लिए एक साइलेंट टीचर की तरह काम आती है। देहदान करने वाले दंपति ने कहा कि मरणोपरांत उनकी देह को तुरंत लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज और अस्पताल नेरचौक पहुंचा दिया जाए। उन्होंने उनकी मृत्यु के उपरांत रिश्तेदारों से किसी भी प्रकार के शोक समारोह, कर्मकांड, मृत्युभोज और अन्य कार्यक्रम न करने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि हमें देहदान करने की प्रेरणा राधास्वामी सत्संग व्यास में देहदान और अंग प्रत्यारोपण के लिए चलाए गए अभियान और डाक्यूमेंट्री फिल्म से मिली। दंपति ने क्षेत्र के लोगों से भी अपील की है कि पीड़ित मानवता के लिए इस प्रकार के काम के लिए आगे आएं।</p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>देहदान के लिए पूर्व सैनिक भी आए सामने</strong></span></p>
<p>जिला मंडी के उपमंडल सुंदरनगर के डुगराई के रहने वाले सेना से सेवानिवृत्त अमर सिंह 36 साल ने भी मृत्यु उपरांत देहदान करने का निर्णय लिया है। उन्होंने बताया कि 17 साल सेना में सेवाएं देने के बाद उन्होंने निर्णय लिया है कि उनका मृत्यु उपरांत शरीर अन्य लोगों के काम आ सके। उन्होंने भी मेडिकल नेरचौक में अपने देहदान करने की सभी औपचारिक़ता पूरी की हैं। उन्होंने कहा कि देहदान करने का जो निर्णय कई लोगों को इस पुण्य कर्म भागीदारी देने के बाद लिया है। जब अन्य लोगों से यह खबर उन तक पहुंची तो उन्हें देहदान करने के निर्णय पर बहुत ज्यादा बल मिला इसलिए उन्होंने यह निर्णय लिया।</p>
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