भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी माकपा ने शिमला शहर और प्रदेश के अन्य स्थानों पर सरकारी भूमि को RSS और इससे जुड़ी संस्थाओं को उनके निजी उपयोग के लिए देने का विरोध जताया है। पार्टी ने प्रदेश सरकार औऱ नगर निगम शिमला से उनका ये फैसला वापिस लेने की मांग की है।
बुधवार को नगर निगम शिमला ने सरस्वती विद्या मंदिर को शिमला शहर के बीचों बीच नाभा क्षेत्र में 17861-54 वर्ग मीटर वन भूमि देने के लिए स्वीकार किया है। माकपा का कहना है कि प्रदेश सरकार ने ऐसा करके शिमला शहर की जनता की सैंकड़ों करोड़ रुपये की संपत्ति को निजी लाभ के लिए देकर उनके साथ बड़ा धोखा किया है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय सरासर कानून और नियमों को ताक में रखकर लिया गया है।
मार्क्सवादी पार्टी के राज्य सचिवमण्डल सदस्य संजय चौहान ने सरकार पर हमला करते हुए कहा कि इस जमीन पर नगर निगम शिमला का स्वंय कब्जा है और जमीन की किस्म जंगल विला होने के बावजूद यह प्रस्ताव नगर निगम के सामने रख दिया। इसलिए इसमें वन अधिनियम की भी अवहेलना की गई है और ऐसा कदम उठाकर नगर निगम ने पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी की भी धज्जियां उड़ाई हैं।
गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश म्युनिसिपल कॉरपोरेशन एक्ट की धारा 157 के अंतर्गत कोई भी जमीन खुली बोली से ही बेची, लीज या किसी अन्य कार्य के लिए दी जा सकती है। लेकिन बीजेपी शासित नगर निगम के द्वारा अपने चेहतों को लाभ देने के लिए ऐसा किया गया है।
सी.पी.एम. ने मांग की है कि प्रदेश सरकार RSS और इससे जुड़ी संस्थाओं को जमीन देने के निर्णयों को तुरंत वापिस ले और इन जमीनों को जनहित के लिए उपयोग में लाया जाए। नगर निगम शिमला द्वारा जो कानून की अवहेलना कर अपने कब्जे की वन भूमि देने के प्रस्ताव पारित किए हैं उन्हें तुरन्त हटाया जाए और उसके खिलाफ सरकार कानूनों की अवहेलना करने के नियम के अनुसार तुरंत कार्रवाई करें। यदि सरकार इन मांगों पर अमल नहीं करती है तो सी.पी.एम. जनता के साथ मिलकर जनविरोधी निर्णयों के खिलाफ आंदोलन करेगी।