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दिल्ली-हरियाणा की तर्ज पर हिमाचल प्रदेश के निजी स्कूलों में भी फाम हो मार्च से मई की फीस: छात्र अभिभावक मंच

पी. चंद, शिमला |

छात्र अभिभावक मंच ने हिमाचल प्रदेश सरकार से दिल्ली और हरियाणा की तर्ज़ पर निजी स्कूलों की मार्च से मई 2020 की तिमाही की फीस को माफ करने की मांग की है। मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि दिल्ली और हरियाणा की प्रदेश सरकारों ने निजी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की मार्च से मई 2020 की फीस माफ कर दी है। इन सरकारों ने आदेश दिया है कि कोई भी निजी स्कूल इन तीन महीनों में टयूशन फीस के अलावा किसी भी प्रकार की कोई अन्य फीस नहीं वसूलेगा। आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया है कि नर्सरी, एलकेजी और अन्य छोटी कक्षाओं के जिन बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई नहीं हो रही है उनसे टयूशन फीस भी न ली जाए और पूरी फीस माफ की जाए।

उन्होंने मांग की है कि अगर प्रदेश सरकार और शिक्षा निदेशालय इस तरह के आदेश हिमाचल प्रदेश में देने में असफल रहता है तो हिमाचल उच्च न्यायालय को वर्ष 2016 के निजी स्कूलों के संदर्भ में दिए गए अपने निर्णय को लागू करवाने और निजी स्कूलों की लूट को रोकने के लिए स्वयं संज्ञान लेना चाहिए और अभिभावकों की इस तिमाही की फीस माफ करके राहत प्रदान करनी चाहिए।

विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि निजी स्कूल अभिभावकों की भारी लूट कर रहे हैं। निजी स्कूलों द्वारा जो मार्च से मई 2020 की तिमाही फीस की मांग की गई है। उसमें कुल फीस का चालीस प्रतिशत हिस्सा नॉन टयूशन फीस का है। अगर सरकार एनुअल चार्ज जिसे वसूलने पर हिमाचल उच्च न्यायालय पहले ही रोक लगा चुका है, मिसलेनियस चार्ज, स्मार्ट क्लास रूम चार्ज व कम्प्यूटर फीस को ही माफ करने की घोषणा कर दे तो अभिभावकों को एक बड़ी राहत मिल जाएगी।

अध्यापकों और कर्मचारियों को नियमानुसार पूरा वेतन न देने वाले निजी स्कूल प्रबंधन लूट को जारी रखने के लिए अब उनको वेतन देने का हवाला देकर लूट जारी रखना चाहते हैं जिसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। ये स्कूल पूरे वर्ष की जितनी फीस वसूल ले रहे हैं अगर उस से आधी फीस भी वसूलें तो भी ये स्कूल भारी मुनाफा कमाएंगे। इसलिए अभिभावकों की लूट करने के लिए इनका कोई भी तर्क मान्य नहीं होना चाहिए। पिछले वर्ष तीन अधिसूचनाओं के माध्यम से उच्चतर शिक्षा निदेशक ने निजी स्कूलों से हिमाचल उच्च न्यायालय के निर्णय को लागू करने, भारी फीसों पर रोक लगाने व ज़्यादा वसूली गयी फीसों को अभिभावकों को वापस करने अथवा अगली किश्त में सम्माहित करने के आदेश दिए थे। इन तीनों निर्णयों में से एक भी निर्णय किसी निजी स्कूल ने लागू नहीं किया।