देश आज ईद के साथ परशुराम की जयंती भी मना रहा है। शिमला में ईद के साथ परशुराम जयंती बड़ी धूमधाम के साथ मनाई गई। ब्राहमण सभा शिमला द्वारा मिडिल बाज़ार में परशुराम जयंती मनायी गई। जहां शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज मुख्यमंत्री अतिथि के रूप में शिरकत की ओर यज्ञ में आहुति डाली।
सुरेश भारद्वाज ने कहा कि भगवान परशुराम का जन्म भले ही ब्राह्मण कुल में हुआ हो लेकिन उनके गुण क्षत्रियों की तरह थे। ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पांच पुत्रों में से चौथे पुत्र परशुराम थे। परशुराम भगवान भोलेनाथ के परम भक्त थे। परशुराम जी का जन्म धरती पर हो रहे अन्याय, अधर्म और पाप कर्मों का विनाश करने के लिए हुआ था। उन्होंने ईद के साथ परशुराम जयंती के मौके पर सभी को बधाई दी और कहा कि हमें परशुराम जैसे महा पुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना चाहिए।
बता दें कि बैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हर वर्ष परशुराम जयंती मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में अपना 6वां अवतार लिया था। उन्हें सात चिरंजीवी पुरुषों में से एक माना जाता है। वे भगवान शिव के कठोर साधक थे। भगवान शिव शंकर ने प्रसन्न होकर उन्हें कई अस्त्र-शस्त्र सहित परशु भी दिया था। परशु धारण करने की वजह से उनका नाम परशुराम पड़ गया।
मान्यता अनुसार एक बार परशुराम जी की माता रेणुका से कोई अपराध हो गया था। इस पर ऋषि जमदग्नि क्रोधित हो गए थे और उन्होंने अपने सभी पुत्रों को मां का वध करने का आदेश दे दिया। लेकिन सभी भाईयों ने मां का वध करने से इंकार कर दिया। लेकिन परशुराम जी ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए माता रेणुका का वध कर दिया। जिससे प्रसन्न पिता ऋषि जमदग्नि ने परशुराम जी को तीन वर मांगने को कहा। परशुराम जी ने पहला वर अपनी माता को दोबारा जीवित करने, दूसरा वर बड़े भाइयों को ठीक करने, और तीसरा वर जीवन में कभी भी पराजित ना होने का मांगा था। भगवान परशुराम भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महारथियों के भी गुरू रहे।