हिमाचल

पीएम मोदी ने हिमाचल के शिल्पकार का बनाया वाद्य यंत्र ’करनाल’ स्पेन के पीएम को भेंट की

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देवभूमि हिमाचल की जनता से जो वादा किया था,वह जी-20 शिखर सम्मेलन में उन्होंने पूरा कर दिया है. मोदी ने जी-20 शिखर सम्मेलन में हिमाचल की कला को प्रोत्साहित करने की बात कही थी. पीएम ने पिछले माह स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज को करनाल़ की जोड़ी भेंट की थी. इससे पहले भी मोदी हिमाचल की टोपी, शाल व अन्य पारंपरिक उत्पादों को विदेशों के राष्ट्राध्यक्षों को भेंट कर प्रोत्साहित कर चुके हैं.

जी-20 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विश्व के नेताओं को कुछ खास तोहफे दिए गए जिनमें हिमाचल मे कांगड़ा की मिनिएचर पेंटिंग और मंडी का करनाल वाद्य यंत्र का सेट दिया गया. मंडी के कारीगर बीर सिंह द्वारा बनाए गए करनाल वाद्य यंत्र के जोड़े को प्रधानमंत्री ने स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज को उपहार स्वरूप भेंट किया गया.

स्पेन के प्रधानमंत्री को भेंट किए गए करनाल की जोड़ी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह विधानसभा क्षेत्र सराज के हस्तशिल्पी वीर सिंह ने तैयार की थी. वीर सिंह ने आजकल शिमला में अपने वाद्य यंत्रों का स्टाल लगाया है. वीर सिंह का कहना है कि एक जोड़ी करनाल बनाने में एक शिल्पी को 12 से 14 दिन का समय लगता है. दोनों करनाल का वजन करीब पांच किलो था. करनाल बनाने में पीलत का प्रयोग किया जाता है. करनाल अकसर लोक उत्सवों व देवी देवताओं के वाद्य यंत्र के रूप में प्रयोग होता है. देव प्रस्थान से पहले बजंतरी करनाल से नाद करते हैं. वीर सिंह ने खुशी जाहिर की और कहा की पहले उनका काम खत्म होने की कगार पर था लेकिन प्रधानमंत्री ने जिस तरह हिमाचल के यंत्रों को बढ़ावा दिया उससे उनके काम में काफी इज़ाफ़ा हुआ है.

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जब भी हिमाचल आते हैं तो अधिकतर उनके द्वारा बनाए गए उत्पादों को ही उन्हें भेंट स्वरूप दिया जाता है. इन्वेस्टर मीट के दौरान जितने भी विदेशी मेहमान धर्मशाला आए थे, उन सभी को देवरथ इन्होंने ही बनाकर दिए थे. वहीं, कुल्लू दशहरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जो राम दरबार भेंट स्वरूप दिया गया था, उसका निर्माण भी उनके हाथों द्वारा किया था. स्पेन के पीएम को भेंट में दी गई करनाल की जोड़ी का निर्माण इन्होंने 15 दिनों में किया था और इसे पीतल से बनाया गया है. बीरी सिंह ने बताया कि उनका परिवार इस पारंपरिक कार्य को बीती पांच पीढ़ीयों से करता आ रहा है.

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