हिमाचल

ग्रामीण महिलाओं ने हर्बल खेती से लिखी सफलता की कहानी…

कांगड़ा जिले की पद्धर पंचायत की फिज़ा में आजकल बबूने के फूल (कैमोमाइल) और काली तुलसी की खुशबू तैर रही है.
खेतों से उठती जन जीवन महकाने वाली इस सुगंध में ग्राम पंचायत पद्धर की मेहनतकश महिलाओं की सफलता की कहानी घुली है. जो ना सिर्फ अपने पैरों पर खड़ी हैं. बल्कि आस पास के गांवों की महिलाओं के लिए एक मिसाल भी बनीं हैं.
धर्मशाला की ग्राम पंचायत पद्धर के पद्धर और घिरथोली गांवों की इन महिलाओं ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में स्वयं सहायता समूह बनाकर बबूने के फूल और काली तुलसी की हर्बल खेती से रोज़गार का नायाब ज़रिया ढूंढ निकाला है. जिसकी मदद से वे घर के कामों को करने के साथ ही परिवार की आर्थिक रूप से भी सहायता कर रही हैं.
पद्धर के वैष्णो स्वयं सहायता समूह की सदस्य सुदर्शना देवी बताती हैं कि धर्मशाला के खंड विकास अधिकारी कार्यालय के शिविर में उन्हें कैमोमाइल और काली तुलसी की खेती का आइडिया मिला. उन्होंने अपनी करीब 1 बीघा जमीन पर परंपरागत खेती से हट कर इसे आजमाने की सोची.
घर वालों ने भी इसमें साथ दिया. खेती के लिए विभाग से बीज फ्री मिल गए और ट्रेनिंग का प्रबंध भी जिला प्रशासन ने ही किया. जोगिंदरनगर और सोलन में लगे प्रशिक्षण कैंप में जाकर हर्बल खेती की बारकियां सीखीं और फिर आकर इसमें जुट गई.
सुदर्शना बताती हैं कि उन्हें ये अंदाजा नहीं था कि अपने ही खेतों में इस तरह के काम के लिए मनरेगा में उन्हें दिहाड़ी भी मिलेगी. इससे बड़ी मदद हुई. वे साल भर से इसमें लगी हैं और बबूने के फूलों की करीब 30 किलो की एक फसल ले चुकी हैं और इससे लगभग 13-14 हजार रुपये की आमदन उन्हें मिली है.
उन्होंने परागपुर के एक बड़े ग्रुप को अपनी उपज बेची है. जबकि काली तुलसी की उपज अभी टेस्टिंग को भेजी है. 6-6 महीने के साइकल में की जाने वाली ये खेती नवंबर से मई और फिर मई से नवंबर के पीरियड में की जाती है.
वहीं, अपनी जमीन के बीघा भर में हर्बल खेती कर रहीं वैष्णो स्वयं सहायता समूह की ही एक और सदस्य आशा देवी बताती हैं कि ये खेती पूरी तरह प्राकृतिक है. इसमें केमिकल मिली खाद का प्रयोग नहीं किया जाता. जंगली जानवर भी इसे नुकसान नहीं पहुंचाते. हां…कीड़ा लगने पर खट्टी छाछ का छिड़काव या प्राकृतिक तरीके के और उपचार किए जाते हैं.
वे बताती हैं कि उन्होंने बबूने के फूल और काली तुलसी के साथ कुछ पौधे अश्वगंधा, जटामासी तथा चिया सीड के भी लगाए हैं. उनकी भी बाजार में अच्छी खासी डिमांड है. उन्हें मार्केट उपलब्ध कराने में भी जिला प्रशासन पूरी मदद कर रहा है.
बबूने के फूल और काली तुलसी के स्वास्थ्य के लिए अनेक फायदे हैं। इन्हें ग्रीन टी बनाने में उपयोग में लाया जाता है, जो अनिद्रा, पेट और लीवर की दिक्कतों तथा बीपी और शूगर जैसे विकारों को नियंत्रित करने में रामबाण है. इसके अलावा इनका सौंदर्य प्रसाधनों में भी इस्तेमाल होता है. वहीं चिया सीड भी पाचन, तनाव और उच्च रक्तचाप को दुरूस्त रखने में मददगार है.
आशा देवी समेत गांव की तमाम महिलाओं की मदद के लिए स्वयं सहायता समूहों की सभी सदस्य प्रशासन और सरकार का आभार जताते हुए कहती हैं कि वे हर्बल खेती से अपने पैरों पर खड़ी हुई हैं, उन्हें पैसा भी मिल रहा है और उन्हें व उनके गांव को नई पहचान भी मिली है.
कई अफसर और दूर पार से लोग उनके काम को देखने और जानने यहां आते हैं. उन्हें इससे बड़ा हौंसला मिला है और वे अब इस खेती को और बडे़ पैमाने पर करने का विचार कर रही हैं.
आकांक्षा स्वयं सहायता समूह की लक्ष्मी, मितांश स्वयं सहायता समूह की पूजा और कमला स्वयं सहायता समूह की कमला देवी बताती हैं कि हर्बल खेती में अच्छी संभावनाएं देखते हुए पद्धर पंचायत में और भी बहुत सी महिलाएं स्वयं सहायता समूह बनाकर इस काम में हाथ आजमाने को आगे आ रही हैं. हर समूह में 6 से 10 महिलाएं हैं, और सभी अपने अपने खेतों में इस खेती को कर रही हैं.
धर्मशाला ब्लॉक में महिलाओं के लिए सामाजिक शिक्षा आयोजक का जिम्मा देख रहीं बीडीओ ऑफिस की अधिकारी कुसुम बताती हैं कि महिलाओं को उनकी रूचि के अनुरूप स्वरोगजार की शिक्षा देने पर बल दिया जा रहा है.
बीडीओ स्पर्श शर्मा का कहना है कि धर्मशाला ब्लॉक में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में महिलाओं के 412 स्वयं सहायता समूह बनाए गए हैं. उन्हें स्वरोजगार लगाने और उनकी पसंद के कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. शिक्षण, प्रशिक्षण से लेकर आर्थिक सहायता तक, उनकी हर तरह से मदद दी जा रही है.
जिलाधीश कांगड़ा डॉ. निपुण जिंदल का कहना है कि प्रदेश सरकार के निर्देशों के अनुरूप जिला प्रशासन का प्रयास है कि स्वयं सहायता समूहों के गठन के साथ ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार की ओर मोड़ा जाए. महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने में ये प्रयास कारगर रहे हैं.
जिले की बहुत सी पंचायतों में महिलाओं ने सराहनीय काम किया है. उनके प्रोत्साहन को हर तरह से मदद के साथ साथ उनकी उपज और उत्पादों के लिए मार्केट उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गयी है.
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