<p>सोमवार को समाचार फर्स्ट ने शिमला आईजीएमसी के एक सीनियर डॉक्टर को बिलासपुर के एक निजी अस्पताल में प्रैक्टिस करते हुए वीडियो दिखाया था। हालांकि, डॉक्टर फिलहाल आईजीएमसी में हैं और उन्होंने इस मामले में सफाई पेश की है।</p>
<p>आरोपों के घेरे में आए आईजीएमसी के प्रोफेसर डॉक्टर मनोज का कहना है,<em> <span style=”color:#d35400″>''बिलासपुर स्थित प्राइवेट हॉस्पिटल मेरी पत्नी का है और घर से ही सटा है। लिहाजा, कभी-कभार अस्पताल में घूमने-फिरने चला जाता हूं।"</span> </em>उन्होंने प्राइवेट हॉस्पिटल में निजी स्तर पर उपचार की बात को खारिज किया।</p>
<p>हालांकि वीडियों में पर्ची काटते और मरीजों से बातचीत करने संवाद देखे जा सकते हैं। बहरहाल, वरिष्ठ डॉक्टर फिलहाल प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं करने का दावा कर रहे हैं। उनका कहना है कि उन्होंने प्री-रिटायरमेंट के लिए आवेदन भी किया है। लेकिन, अभी सरकार ने मंजूर नहीं किया है।</p>
<p>इस वीडियो पर क्लिक करके आप मामला समझ सकते हैं। लेकिन, इस मामले के और भी पहलू हैं। इसलिए वीडियो देखने के बाद नीचे की लाइनें जरूर पढ़ें…</p>
<p><iframe allowfullscreen=”” frameborder=”0″ height=”360″ src=”https://www.youtube.com/embed/o7G_iJyHaac” width=”640″></iframe></p>
<p>आपको बता दें कि समाचार फर्स्ट ने यह स्टोरी काफी छानबीन के आधार पर पूरी की है। लेकिन, इस संदर्भ में मेडिकल सेक्टर के हालात और सरकार की नीतियों को समझना जरूरी है। तभी आप जान पाएंगे कि आखिर क्यों डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में काम करने की बजाए प्राइवेट प्रैक्टिस को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं।</p>
<p><strong><span style=”color:#c0392b”>हिमाचल के डॉक्टर और खस्ताहाल नीतियां </span></strong></p>
<p>हिमाचल प्रदेश में स्वास्थ्य नीतियों की बात करें तो कई सारे पेंच ऐसे हैं, जिनकी वजह से डॉक्टर यहां के सरकारी अस्पतालों में काम करना नहीं चाहते। मसलन, पीजी वाले डॉक्टरों की सैलरी ही मात्र 26,250 रुपये है। ऊपर से उन्हें 10 लाख रुपये की बैंक गारंटी भरने के लिए कहा जाता है। ऐसे में जब एक डॉक्टर लगभग 26 हजार रुपये में गुजारा करेगा तो 10 लाख की बैंक गारंटी का दारोमदार भला कैसे पूरा करेगा…।</p>
<p><strong><span style=”color:#c0392b”>'कोई सुविधा नहीं, मगर सारा हिसाब डॉक्टर दे'</span></strong></p>
<p>हिमाचल प्रदेश मेडिकल ऑफिसर्स एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी डॉक्टर पुष्पेंद्र का कहना है,<span style=”color:#8e44ad”><em>" प्रदेश की खस्ताहाल मेडिकल व्यवस्था के लिए डॉक्टर एक आसान टारगेट हैं। लेकिन, इनकी बदहाली की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। सरकारी स्तर पर मोटी फीस जमा करके जब कोई डॉक्टर बनता है तो वह अच्छी सहूलियत चाहता है। लेकिन, ऐसा नहीं हो पाता। उल्टा 10 लाख की बैंक गारंटी का दबाव बना कर पीजी डॉक्टरों को 26 हजार की तनख्वाह में निपटा दिया जाता है।" </em></span></p>
<p>डॉक्टर पुष्पेंद्र का कहना है कि नए डॉक्टरों का प्रमोशन का भी लफड़ा है। जो डॉक्टर रिटायर्ड हो जाते हैं, उन्हें ही दोबारा प्रिंसिपल के पद पर नियुक्त कर दिया जाता है। ऐसे में कतार में पीछे खड़े डॉक्टर मायूस हो जाते हैं। सरकार एक तरफ आईजीएमसी और टीएमसी में रिटायरमेंट की उम्र 62 साल तय की है लेकिन, बाकी के मेडिकल कॉलेज में उम्र सीमा 68 साल कर दी है। ऐसे में यहीं से रिटायर्ड डॉक्टर दूसरी जगहों के ऊंचे पदों पर आसीन हो जाते हैं।</p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>फिर समाधान क्या है? </strong></span></p>
<p>मेडिकल ऑफिसर्स एसोसिएशन की दलीलों पर गौर करें तो उनका भी कहना वाजिब है। लेकिन, फिलवक्त में देखे तो तय मानकों को पूरा करना भी जिम्मेदारी है। मसलन कुछ हद तक पीजी डॉक्टरों की मुश्किलें समझ आती हैं। लेकिन, सीनियर डॉक्टरों की प्रैक्टिस जस्टिफाई नहीं की जा सकती।</p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>हेल्थ राजनीतिक मुद्दा क्यों नहीं बनता? </strong></span></p>
<p>हेल्थ किसी भी व्यवस्था के लिए प्रमुख सब्जेक्ट है। प्राणी मात्र के लिए महत्वपूर्ण जरूरत है। फिर यह मुद्दा राजनीति में हावी क्यों नहीं होता? जनता का सरोकार हर बार इस क्षेत्र से होता है फिर जनता इसके प्रति जागरूक क्यों नहीं होती?</p>
<p>अस्पतालों की बदहाली से लेकर डॉक्टरों और स्टाफ की बदहाली एक बड़ा मुद्दा है। जिसमें शोषण की शिकार जनता ही है।</p>
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