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छात्र अभिभावक मंच की दो टूक, निजी स्कूलों पर अपना एक्शन प्लान बताएं शिक्षा निदेशक

<p>छात्र अभिभावक मंच ने 23 अप्रैल को उच्चतर शिक्षा निदेशक और संयुक्त शिक्षा निदेशकों और उप निदेशकों के मध्य हुई बैठक की कार्यवाही की अधिसूचना जारी करने की मांग की है। मंच ने शिक्षा अधिकारियों से पूछा है कि वे निजी स्कूलों पर कार्रवाई का अपना एक्शन प्लान बताएं। मंच ने एक बार पुनः उच्चतर शिक्षा निदेशक को चेताया है कि वह इंस्पेक्शन टीमों की रिपोर्ट को सार्वजनिक करें अन्यथा आंदोलन होगा</p>

<p>मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा ने शिक्षा विभाग की बैठक पर असंतोष व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि 1472 स्कूलों में से केवल 638 स्कूलों की रिपोर्ट शिक्षा निदेशालय में पहुंची है। इसका मतलब है कि केवल 43 प्रतिशत स्कूलों में ही इंस्पेक्शन का कार्य सम्पन्न हुआ है। इसी से शिक्षा विभाग की गम्भीरता का पता चलता है। शिक्षा विभाग अभी भी निजी स्कूलों की मनमानी पर गम्भीर और संवेदनशील नहीं है। केवल 43 प्रतिशत स्कूलों की रिपोर्ट आने से स्पष्ट है कि न तो शिक्षा विभाग ने 57 प्रतिशत स्कूलों की इंस्पेक्शन की है और न ही इन स्कूलों ने शिक्षा विभाग में अपना रिकॉर्ड जमा करवाने की जहमत उठाई है।</p>

<p>इस तरह आधे से ज़्यादा स्कूल इंस्पेक्शन व रिकॉर्ड इकट्ठा करने के दायरे से बाहर रह गए हैं। उन्होंने उच्चतर शिक्षा निदेशक से इस बाबत प्रश्न किया है कि आखिर क्यों 57 प्रतिशत स्कूलों की इंस्पेक्शन रिपोर्ट शिक्षा विभाग के पास नहीं पहुंची है। वह यह भी बताएं कि इन निजी&nbsp; स्कूलों में इंस्पेक्शन न करने वाले अधिकारियों और अपना रिकॉर्ड जमा न करने वाले निजी स्कूलों, इन दोनों पक्षों पर शिक्षा विभाग ने क्या कार्रवाई अमल में लायी है।</p>

<p>उन्होंने कहा कि शिक्षा विभाग केवल बैठकों से संतुष्टि हासिल करना चाहता है व व्यवहार में कोई भी ठोस कार्रवाई नहीं करना चाहता है। इसी का परिणाम है कि जिला मुख्यालयों के जिन निजी स्कूलों की रिपोर्ट 11 अप्रैल से पहले जमा होनी चाहिए थी,वह सत्रह दिन बीतने के बावजूद भी शिक्षा निदेशालय में जमा नहीं हुई है। इस तरह कोई भी स्वाभाविक रूप से अंदाज़ा लगा सकता है कि निजी स्कूलों को कोई न कोई संरक्षण ज़रूर है जिसके कारण निजी स्कूल बेलगाम हो चुके हैं। इसी संरक्षण के कारण निजी स्कूल मनमानी करते हैं व सरकारी आदेशों की परवाह नहीं करते हैं। निजी स्कूलों की इसी मनमानी के फलस्वरूप आज तक इनकी रिपोर्ट लेने में शिक्षा विभाग के अधिकारी विफल रहे हैं।</p>

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