छात्र अभिभावक मंच ने शिमला के तारा हॉल स्कूल द्वारा 20 नवंबर से शुरू होने वाले फाइनल एग्ज़ाम को स्थगित करने की कड़ी निंदा की है। सरकार से इस मामले पर हस्तक्षेप करके इन्हें समय पर करवाने की मांग की है। मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा, और सदस्यों ने फाइनल एग्ज़ाम की तिथि को स्थगित करने के कदम को तानाशाही और लूट तंत्र करार दिया है। उन्होंने कहा है कि निजी स्कूल सभी चार्ज़ेज़ सहित पूरी फीस वसूली के लिए तरह तरह के हथकंडे अपना रहे हैं ताकि फीस वसूली को जायज़ ठहराया जा सके। यह केवल मनमानी लूट को सुनिश्चित करने का तरीका है। सब जानते हैं कि फरवरी शिमला में बेहद ठंड का महीना होता है। इस दौरान बर्फ़बारी आम बात है। बेहद ठंडे मौसम के कारण इस समय कोरोना जैसे सभी प्रकार के वायरल संक्रमण का खतरा भी कई गुणा बढ़ जाता है।
स्कूल का यह तर्क कि फरवरी में ऑनलाइन के बजाए स्कूल में परीक्षाएं करवाई जाएंगी पूरी तरह अवैज्ञानिक और तर्कहीन है। इस से बच्चों,अध्यापकों और कर्मचारियों की जान पर खतरा कई गुणा बढ़ जाएगा। तारा हॉल स्कूल को सरकारी स्कूलों से सबक लेना चाहिए जिन्हें खोलते ही कोरोना संक्रमण चरम पर पहुंच गया था। जिन्हें दोबारा से 25 नवम्बर तक बन्द करना पड़ा। इसलिए फरवरी में फिज़िकल एग्ज़ाम की सोच ही बेबुनियादी है। इसके बावजूद वार्षिक परीक्षाओं को स्थगित किया जा रहा है। इसके पीछे केवल एक ही कारण है और वह पूर्ण फीस वसूली और अभिभावकों की मनमानी लूट करने का है। उन्होंने तारा हॉल स्कूल के इस निर्णय को बेहद हास्यास्पद और बचकाना करार दिया है। एक तरफ उच्च शिक्षण संस्थानों ने अपने छात्रों को बिना परीक्षाओं के ही प्रोमोट कर दिया वहीं दूसरी ओर निजी स्कूल अपनी मनमानी के लिए छोटे बच्चों की जिंदगी से खेलने में भी गुरेज नहीं कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि तारा हॉल स्कूल प्रबंधन तानाशाही कर रहा है। उसने 20 नवम्बर से शुरू होने वाली वार्षिक परीक्षाओं को स्थगित करके 8 फरवरी से इसे करने का आदेश जारी कर दिया है। यह सब केवल अपनी आर्थिक लूट को जारी रखने का पैंतरा है। उन्होंने सवाल किया है कि वार्षिक परीक्षाओं को तीन महीने तक टालने के पीछे क्या बुनियादी मकसद है। उन्होंने इसे छात्रों और अभिभावकों की मानसिक प्रताड़ना करार दिया है। इस से निजी स्कूलों की पोल खुल गयी है। एक तरफ ये स्कूल निरन्तर ऑनलाइन क्लासेज़ की डींगें हांक रहे थे और दूसरी ओर समय से वार्षिक परीक्षाएं न करवाने से स्पष्ट हो गया है कि निजी स्कूलों ने ऑनलाइन कक्षाओं के नाम पर केवल औपचारिकता की है। अगर निजी स्कूलों ने वास्तव में ही निरन्तर ऑनलाइन कक्षाएं सुनिश्चित की हैं व उनका पाठयक्रम पूर्ण हो चुका है तो फिर वार्षिक परीक्षाओं की तिथि आगे ले जाने का क्या मतलब है। बच्चे व अभिभावक कोरोना काल में ऑनलाइन कक्षाओं के कारण पिछले नौ महीने से भारी मानसिक तनाव में हैं। समय पर वार्षिक परीक्षाएं होने से इस तनाव से उन्हें मुक्ति मिलती। परीक्षाओं को तीन महीने के लिए टालने से एक तरफ छात्रों पर अतिरिक्त मानसिक तनाव होगा वहीं दूसरी ओर ऑनलाइन कक्षाओं के नाम पर अभिभावकों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ेगा।
उन्होंने हैरानी व्यक्त की है कि कुछ बेहद प्रभावशाली निजी स्कूल प्रदेश सरकार व शिक्षा निदेशालय के आदेशों व उसकी नियमावली को सरेआम ठेंगा दिखाते है परन्तु सरकार व शिक्षा विभाग पूरी तरह से असहाय नज़र आते हैं। इन स्कूलों पर कोई कार्रवाई करने में इनके हाथ पांव फूल जाते हैं जिसका सीधा फायदा अपनी लूट को बरकरार और बढ़ाने के लिए ये निजी स्कूल उठाते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि निजी स्कूलों में फीस व पीटीए के सवाल पर 18 मार्च व 8 अप्रैल 2019 के अपने आदेशों को लागू करवाने के लिए शिक्षा निदेशालय को मुंह की खानी पड़ी थी। इन आदेशों को लागू करना तो दूर की बात इन निजी स्कूलों ने शिक्षा निदेशक के पत्रों का जबाव तक देना उचित नहीं समझा था। पिछले डेढ़ वर्ष से निजी स्कूलों के संचालन के लिए कानून का प्रारूप सरकार के पास पड़ा है परन्तु सरकार निजी स्कूलों के दबाव में इस कानून को पारित करवाने अथवा संशोधन करने की हिम्मत तक नहीं कर पा रही है। उन्होंने सरकार व शिक्षा विभाग से मांग की है कि बिल्कुल अंतिम समय में वार्षिक परीक्षाओं को रद्द करने और उन्हें फरवरी तक स्थगित करने के निर्णय को वापिस करवाने के लिए तारा हॉल स्कूल प्रबंधन को सख्त आदेश जारी किए जाएं और परीक्षाएं निर्धारित समय व शेडयूल पर करवाई जाएं।