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माघ महीने की पांचवी तिथि को मनाया जाता है बसंत पंचमी का त्योहार

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फूलों की वर्षा, शरद की फुहार
सूरज की किरणे, खुशियों की बहार
चन्दन की खुशबु, अपनों का प्यार
मुबारक हो आप सबको बसंत पंचमी का त्योहार

तो इसी शेयर के साथ हम आपको वसंत पंचमी की बधाई देते है।
और आज बताते है कि हमारे जीवन में इस पर्व का क्या महत्व है।

बसंत पंचमी भारत का प्रमुख त्योहार है, जो माघ महीने की पांचवी तिथि को मनाया जाता है। यही कारण है कि इसे वसंत पंचमी कहा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर की बात करें तो हर साल यह त्योहार जनवरी या फरवरी माह में मनाया जाता है। इसी तिथि के साथ शिशिर ऋतु का प्रस्थान और वसंत ऋतु का आगमन होता है।
यह त्योहार मुख्य रूप से महादेवी सरस्वती को समर्पित है और कही-कही इसे कामदेव और रती को भी समर्पित किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की तपस्या कर उनसे भेंट की और फिर उन्हीं की इच्छा से ब्रह्मदेव ने पूरी सृष्टि की सरंचना की। अपनी रचना के बाद भी ब्रह्मदेव संतुष्ट नहीं थे। उन्हें अपनी रचना में पूर्णता की अनुभूति नहीं हो रही थी।
ऐसा देखकर फिर उन्होंने भगवान विष्णु का पूजन किया और अपनी समस्या भगवान विष्णु जी को बताई।
भगवान विष्णु ने उन्हें सुझाव दिया कि कोई ऐसी चेतना करें, जिससे सृष्टि में चेतना का प्रादुर्भाव हो।
तब उन्होंने विष्णु जी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का और अपने मन में योग शक्ति का आह्वान किया। उसी समय उनके मानस से अत्यंत सुंदर नारी का प्रादुर्भाव हुआ जिन्होंने अपने हाथ में वीणा धारण की हुई थी। इस दौरान देवी ने परम पिता ब्रह्मा को प्रणाम किया।
ब्रह्माजी देवी के इतने सुंदर रूप को देखकर अचंभित हो गए। उन्होंने फिर देवी से वीणा बजाने के लिए अनुरोध किया। देवी के वीणा बजाते ही सारे जगत को अलग ही चेतना की अनुभूति होने लगी।
जल एवं वायु को गति तो वहीं चराचर जीवों को ध्वणि प्राप्त होने लगीं। क्योंकि उनके आने से सारा वातावरण संगीतमय हो उठा। इसलिए उन्हें संगीत की देवी सरस्वती कहा जाता है। इसके साथ ही माता सरस्वती को विद्या, ज्ञान और संगीत की देवी के नाम से भी जाना जाने लगा।
देवी सरस्वती के गायन से सृष्टि में काम का जन्म भी हुआ और स्वयं ब्रह्मा ने उन्हे अपनी भार्या का स्थान दिया।
एक कथा के अनुसार, द्वापर युग में देवी सरस्वती की कृपा से ही श्री कृष्ण ने केवल 64 दिनों में समस्त 64 विद्याओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। इसी से प्रसन्न होकर उन्होंने देवी सरस्वती को वर देने की इच्छा जताई। उन्होंने देवी को वरदान दिया कि धरती पर उनकी पूजा की जाएगी। तब से ही वसंत पंचमी का यह पर्व मनाया जा रहा है।
एक मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने महादेव का ध्यान तोड़ने के लिए देवी सरस्वती की सहायता मांगी। उनकी प्रार्थना स्वीकार कर देवी सरस्वती की ही प्रेरणा से कामदेव ने वसंत पंचमी के दिन महादेव पर अपने वाण से प्रहार किया और उनके कोप का भाजन बनना पड़ा।
अपने पति कामदेव को इस तरह देखकर रति बहुत दुखी हुई। रति के दुख को देख महादेव ने यह वरदान दिया कि वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती के साथ कामदेव और रति की भी पूजा होगी।
आज के ही दिन भगवान श्रीराम शबरी से मिले थे और उन्होंने उनके झूठे बेर खाए थे।
बता दें कि आज वसंत पंचमी का दिन किसी भी विद्यार्थी के लिए खास होता है। कहा जाता है कि जो भी इस दिन विद्या का दान मांगता है उसे वे अवश्य प्राप्त होता है।