राजधानी शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान पर स्थित क्राइस्ट चर्च देश ही नहीं विदेश में भी अपनी अलग पहचान रखता है. शिमला घूमने आने वाले पर्यटक इस चर्च में जाना नहीं भूलते हैं. क्रिसमस के लिए चर्च को सजाने का काम शुरू हो गया है.
चर्च में 150 साल पुरानी एक बेल (घंटी) है. इसे प्रार्थना से पहले बजाया जाता है. इन दिनों इस घंटी की मरम्मत का कार्य भी किया जा रहा है. ये घंटी 40 साल बाद ठीक हुई है. जिससे शिमला गूंजेगा. 2019 में भी इस घंटी का मरम्मत कार्य किया गया था और इस घंटी को बजाया गया था. लेकिन मरम्मत में कुछ कमी रह गई थी. अब इसको पूरी तरह ठीक कर दिया गया है.
यह बेल कोई साधरण घंटी नहीं बल्कि मैटल से बने छह बड़े पाइप के हिस्से हैं. इन पाइप पर संगीत के सात सुर की ध्वनि आती है. इन पाइप पर हथौड़े से आवाज होती है, जिसे रस्सी खींचकर बजाया जाता है. यह रस्सी मशीन से नहीं, बल्कि हाथ से खींचकर बजाई जाती है.
चर्च के पादरी सोहन लाल ने बताया कि ये घंटी हर रविवार सुबह 11 बजे होने वाली प्रार्थना से पांच मिनट पहले बजाई जाती है. क्रिसमस और न्यू ईयर के मौके पर रात 12 बजे इस बेल को बजाकर जश्न मनाया जाता है. अंग्रेजों के जमाने से इस घंटी को आपातकाल या फिर प्रार्थना को बुलाने के लिए बजाया जाता था. साल 1982 में ये बेल खराब हो गई थी. जिसको 40 साल बाद पूरी तरह ठीक किया गया है.
9 सितंबर 1844 में इस चर्च की नींव कोलकाता के बिशप डेनियल विल्सन ने रखी थी. 1857 में इसका काम पूरा कर लिया गया. स्थापना के 25 साल बाद इंग्लैंड से इस बैल को शिमला लाया गया था. 1982 में यह बेल खराब हो गई थी.
उस वक्त अंग्रेजों के आवास शहर में अलग अलग स्थानों पर होते थे. बैल के माध्यम से सूचित किया जाता था कि प्रार्थना शुरू होने वाली है. घंटी की ध्वनि समूचे शिमला में सुनाई देती थी. हालांकि ध्वनि प्रदूषण से अब इस घंटी की आवाज़ दूर तक सुनाई नही देती है लेकिन इस घंटी की आवाज़ सबको अपनी ओर आकर्षित करती है.