<p>पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में मौसम बदलते ही गेहू की फ़सल को बीजने का कार्य शुरू हो गया है। किसान खेतों में खूब पसीना बहा रहा है। हिमाचल के अधिकतर खेतों में अब बैल की जोड़ी खेत नही जोतती है बल्कि बैलों की जगह अब ट्रेक्टर या आधुनिक मशीनों ने ले ली है। एक वक्त था जब हिमाचल के फसलों की बिजाई के लिए बैलों पर निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन विज्ञान की तरक़्क़ी ने अब कई चीजें किसान के लिए आसान कर दी है। खेतों की बिजाई व जोताई पर अब बैल नही बल्कि ट्रैक्टर करते नज़र आते है।</p>
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<p>कुछ इलाक़े अभी भी हैं जहां किसान बैल पालते है और बैलों से ही खेतों का काम करवाया जाता है। लेकिन अधिकतर किसान बैल पालना छोड़ चुके है। परिणामस्वरूप बैल अब खेतों की जगह सड़कों पर ज़्यादा दिखते हैं। क्योंकि किसान के पास बैल का कोई काम ही नही रह गया है। एक वक्त ऐसा भी था जब बैल ख़रीददारी के लिए मेले लगते थे जिसमें किसान दूर दूर से बैल की जोड़ी खरीदने आते जाते थे। लेकिन समय के चक्र में बैल बहुत पीछे छूटता जा रहा है।</p>
<p>वैसे तो बैल भगवान शिव की सवारी भी है। नंदी के नाम पर भारत मे बैल की पूजा भी होती है। शिव मंदिरों में तो बैल की हर रोज पूजा होती है। समय बड़ा बलवान है मनुष्य अपनी सहूलियत के हिसाब से काम करता है। लेकिन कई मर्तबा वक्त बदलता है और पुरानी चीजों की जरूरत फिर आन पड़ती है। बैल खेतों में रहे इसके लिए किसी बड़े चमत्कार की ज़रूरत है क्योंकि अब तो सरकार भी ऐसी योजना पर काम कर रही है कि गाए बछड़ा ही पैदा न करे। यदि ऐसा होता है तो बैल इतिहास के पन्नो पर सिमट कर रह जाएंगे।</p>
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