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गिरिपार इलाके में अनोखी दीवाली शुरू, एक माह तक चलेगा गीत संगीत का सिलसिला

पी. चंद |

सिरमौर जिले के गिरिपार इलाके को लोक संस्कृति का 'सिरमौर' माना जाता है। इस इलाके में आज भी सदियों पुरानी अनूठी परंपरा का निर्वहन हो रहा है। यहां के अधिकांश गांवों में अनोखी दीपावली मनाई जाती है। अबकी बार भी इसे धूमधाम से मनाया जा रहा है। 14 वर्ष का वनवास पूरा होने के बाद सीताजी बहु बनकर घर आई थी तो ग्रामीण इलाकों में नई दीपावली मनाई गई। तब महालक्ष्मी के रूप में उनका अयोध्या में बूढ़ी महिलाओं ने जोरदार स्वागत किया था। लेकिन एक माह बाद अमावस्या के दिन बहुओं ने बूढ़ी महिलाओं को वही मान-सम्मान वापस दिया। उन्होंने सास की आरती उतारी। राम और सीता को जयमाला पहनाई। उसी याद में बूढ़ी दीपावली भी मनाई जाती है।

गिरिपार में  दीपावली का पर्व शुरू हो गया है। पहली रात को छोटी दीपावली और दूसरी रात को बड़ी दिपावली है। तीसरे दिन 'भिउंरी' और चौथे दिन 'जंदूई' रहेगी। भिउंरी में उसी गांव की ब्याही हुई महिलाएं मायके पक्ष में नाच गाना करती हैं। जबकि 'जंदूई' में पुरुष ऐतिहासिक महत्व की लोकगाथाएं गाते हैं। शुरू की दो रातों के दौरान मशाल जलाई गई। इसे सुबह तक जलाए रखा जाएगा। इन्हें स्थानीय भाषा में 'डाव' कहा जाता है।  रात भर लोक वाद्ययंत्रों की थाप पर नाटियों का दौर चलता रहा।