गणेश जी की स्थापना अपने आप में बड़ा ही मांगलिक उत्सव है इनके साथ शुभ लाभ और रिद्धि सिद्धि की स्थापना भी होती है यह सभी शक्तियां अपने नाम के अनुसार प्रभाव देती हैं गणपति के आगमन पर घर में रंगोली और स्वास्तिक बनाते हैं स्थापित होने के बाद हर दिन पूजन और अलग-अलग मिठाइयों का भोग लगाकर उत्सव मनाया जाता है.
गणेश जी की मूर्ति के लिए सिर्फ मिट्टी की जरूरत होती है मिट्टी को गणेश का रूप देखकर की गई पूजा आराधना का पूर्ण पूर्ण फल मिल जाता है मिट्टी ना मिल पाए तो हल्दी की गांठ से भी गणेश बन जाते हैं नारद पुराण में हल्दी के गणेशको स्वर्ग गणेश के नाम के सम्मान प्रभावशाली माना गया है.
प्रतिमा ना मिल पाए तो पूजा की सुपारी में ही गणपति की स्थापना की जा सकती है श्री गणेशाय नमः बोलते हुए सिर्फ रोली का छींटा चावल के दो दाने, गुड और बताशे से ही इनकी पूजा हो जाती है इनकी सरल पूजा में भी अगर कोई गलती हो जाए तो भी ईशकोप का भय नहीं होता है.
गणेश जी का जन्म ही सृजन का प्रमाण है देवी पार्वती ने पुतला बनाकर उसमें प्राण डालें.गणेश जी उत्साह के स्वामी है इनका सीधा संबंध पृथ्वी से है मान्यता है कि पृथ्वी के पुत्र मंगल के अंदर गणपति की वजह से ही उत्साह का सृजन हुआ था अलग-अलग युगों में गणेश के अवतारों ने संसार की शोक व संकट का नाश कर उत्साह पैदा किया इसलिए हर मांगलिक काम में उत्साह के लिए गणेश पूजन किया जाता है
गणेश को ही शुभ मुहूर्त कहा जाता है यानी जिस काल में गणेश जी की उपस्थिति हो वह समय शुभ मुहूर्त हो जाता है इसलिए सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है गणपति सभी दिशाओं के स्वामी है उनकी आज्ञा के बिना देवता पूजा स्थल पर नहीं पहुंचते पहले वे दिशाओं की बाधा दूर करते हैं फिर पहुंचते हैं यही कारण है कि किसी भी देवी देवता की पूजा से पहले भगवान गणपति का आह्वान किया जाता है
गणपति में शुभ और मंगल करने वाली भगवान नारायण की शक्तियां हैं इसलिए गजानन को राजसी देवता भी कहा जाता है विष्णु जी के पास सृष्टि के पालन की जिम्मेदारी है जो की गणेश की कृपा से ही पूरी हो पाती है गणेश जी की पत्नियों रिद्धि सिद्धि में मां लक्ष्मी का वास है रिद्धि का तात्पर्य है वृद्धि व सिद्धि का शुभता से है इसलिए गणपति पूजन से भी मां लक्ष्मी रूपी रिद्धि सिद्धि का जीवन भी आना ही मंगलसूचक है
गणेश चतुर्थी से शुरू हुआ गणेशोत्सव दसवें दिन गजानन की विदाई के साथ पूरा होता है इसमें गणेश की मिट्टी की प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है यह एक अनुष्ठान है जो जन्म और मृत्यु के चक्र को पूर्णता देता है जल में नारायण यानी ईश्वर का वास होता है इसलिए गणेश और नारायण के मिलने का यह अनुष्ठान समृद्धि व पूर्णता का प्रतीक होता है
7 सितंबर को गणेश चतुर्थी है। इस दिन देशभर में गणपति स्थापना होगी। हिंदू पंचांग के अनुसार, गणेश चतुर्थी 6 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 01 मिनट पर प्रारंभ होगी और 7 सितंबर को शाम 05 बजकर 37 मिनट पर इसका समापन होगा. ऐसे में गणेश चतुर्थी 7 सितंबर को मनाई जाएगी. इस दिन भगवान गणेश की मूर्ति स्थापना का मूहुर्त सुबह 11 बजकर 03 मिनट से लेकर दोपहर 01 बजकर 34 मिनट तक रहेगा. ऐसे में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करने के लिए आपको करीब 2 घंटे और 31 मिनट का समय मिलने वाला है.
सुबह जल्दी उठकर गणेश जी का ध्यान करें। इसके बाद घर और मंदिर की अच्छे से साफ-सफाई कर लें। गणेश जी की मूर्ति स्थापित करने के लिए एक मंडप सजाएं। इसके लिए आप फूलों, रंगोली और दीपक का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके बाद कलश में गंगाजल, रोली, चावल, कुछ सिक्के और एक आम का पत्ता डालकर इसे मंडप में स्थापित करें। अब एक चौकी रखकर उसपर हरा कपड़ा बिछाएं और गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें।
मूर्ति स्थापना के बाद तीन बार आचमन करें और इसके बाद पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद मूर्ति के समक्ष दीपक जलाएं। साथ ही गणेश जी को वस्त्र, जनेऊ, चंदन, शमी के पत्ते, सुपारी, फल और पीले फूल आदि अर्पित करें। इसके साथ ही भगवान गणेश को 21 दूर्वा चढ़ाएं और उनके प्रिय भोग जैसे मोदक और लड्डू आदि अर्पित करें। पूजा के अंत में सभी सदस्य मिलकर गणेश जी की आरती करें और प्रसाद बांटें।
गणेश जी की मूर्ति स्थापित करने के लिए घर का उत्तर भाग सबसे उत्तम माना जाता है। इससे आपको बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। पूजा के बाद भगवान गणेश का ध्यान करते हुए घर-परिवार की शुखहाली के लिए प्रार्थना
करें।
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