हिमाचल

हिमाचल में बढ़ते तापमान के लिए आखिर कौन जिम्मेदार

  • मानव का लालच कर रहा है क्या प्रकृति में बदलाव
  • पहाड़ों पर भी गर्मी दिखा रही अपना प्रचंड रूप
  • 10 सालों में शिमला का क्या इतना बदल गया स्वरूप

सलपना राणा, कांगड़ा। हिमाचल में इस साल गर्मी कड़े तेवर दिखा रही है। प्रचंड गर्मी के चलते प्रदेश के पहाड़ी इलाके तपने लगे हैं। लोग अक्सर पहाड़ों पर ठंडी हवा का आनंद लेने के लिए पहुंचते हैं,
लेकिन गर्म हवाओं का असर अब पहाड़ों पर भी दिखने लगा है. प्रदेश के तापमान में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. गर्मी से राहत के लिए लोग जहां शिमला का रुख करते हैं,

वहीं शिमला में भी 10 साल बाद इतनी गर्मी का एहसास हो रहा है। धरती का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है जिसके चलते प्रकृति में कई परिवर्तन हो रहे हैं। कुल मिलाकर देखा जाएं तो बढ़ती गर्मी के लिये कहीं न कहीं मानव जाति ही कसूरवार है। प्रकृति के उपलब्ध साधनों का हद से अधिक दुरूपयोग किया जा रहा है।

अपने स्वार्थ के लिए मनुष्य प्राकृतिक वातावरण को लगातार नुकसान पहुंचाता चला जा रहा है।
वैज्ञानिकों की बार−बार चेतावनी के बावजूद प्रकृति का दोहन करने की इच्छा खत्म नहीं हो रही है।
अपने लाभ के लिए मनुष्य विकास के नाम पर कई ऐसे अविष्कार कर रहा है जो जल, जंगल, जमीन में जहर घोल रहे हैं।

प्रकृति के उपहारों का ऐसा दुरूपयोग हुआ कि धरती, आकाश, पाताल से मानव को जो कुछ मिल सकता था उसे लेने में कोई कसर बाकी न रखी। प्रदेश के कई इलाकों में दिन -प्रतिदिन आग से जंगल धधक रहे हैं। पेड़ों का अंधाधुंध कटान हो रहा है।

जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से लगातार धरती का तापमान बढ़ रहा है.
प्रकृति ने मानव को सभी वस्तुएं दी जिनसे वह किसी न किसी रूप में लाभांवित होता रहा है।
परंतु आधुनिकता की दौड़ में इंसान इन प्राकृतिक स्त्रोतों को अनजाने में स्वयं ही खत्म कर रहा है।
जीव, जंतु और वनस्तपति तेजी के साथ खत्म हो रहे हैं और उसका प्रभाव मानव जीवन पर पड़ रहा है।

नतीजा सामने है। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है तथा ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं। आधुनिकता की तेजी से जीवन शैली तो जरूर आसान हुई है परंतु कहीं न कहीं वह मानव जीवन को प्रभावित कर रही हैं।
कई जीव-जंतु और वनस्पति विलुप्त हो रही हैं। गौर करें तो डेढ़ दशक पहले गौरेया चिड़िया जो पहले काफी संख्या में दिखाई देती थी। आज उनकी संख्या काफी कम हो गई है।

जंगलों के दहकने से कई जंगली जानवर इसकी चपेट में आ रहे हैं नतीजा यह है कि यह जानवर चिड़ियाघर तक ही सिमट कर रह गए हैं। इसके अलावा तमाम औषधीय पौधे और घास भी विलुप्त होने के कगार पर है। यदि तापमान इसी तेजी से बढ़ता रहा तो ग्लेशियर पिघलेंगे और बाढ़ के रूप में मानव जीवन को प्रभावित करेंगे।

सच में आप इस बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग से राहत पाना चाहते है तो हम सभी को अधिक से अधिक पेड़ लगाने का संकल्प लेने की आवश्यकता है।

Kritika

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