देवकीनंदन, यशोदानन्दन, द्वारिकाधीश, आनन्दसागर, दयानिधि कृष्ण के स्वरुप का वर्णन एवं गुणगान असंभव है। कृष्ण तो वो विलक्षण व्यक्तित्व है जिसकी कल्पना स्वप्न से भी परे है। पुरषोत्तम, मुरलीमनोहर, श्याम सुन्दर के किस रूप का वंदन करें, बाल्यरूप, सखारूप, प्रेमी स्वरुप, पुत्र रूप, ज्ञान के प्रवर्तक प्रत्येक रूप एक अनोखी लीला है.
जिसकी गूढ़ता समझ पाना तो प्राणिमात्र के लिए संभव ही नहीं है। हम लोग सदैव जीवन में विषमताओं से घबराते है, पर मधुसूदन का जीवन तो विषमताओं के कालचक्र से ही घिरा रहा। उन्होंने तो जन्म से ही विषमताओं से ही साक्षात्कार किया। केशव पशु प्रेमी भी थे इसलिए उन्होंने अपने कृष्ण जन्म में गौ माता की खूब सेवा की। प्रकृति प्रेमी स्वरुप में उन्होंने गोवर्धन पर्वत का आश्रय लिया। संगीत प्रेमी मुरलीमनोहर ने मुरली की तान से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।
माखनचोर मुरलीमनोहर का प्रत्येक रूप मोहनीय है। भक्तवत्सल श्यामसुंदर भगवन को आप जिस स्वरुप में ध्याओगे वे उसी रूप में आपके समक्ष प्रत्यक्ष हो जाएंगे। कृष्ण तो एक ऐसा दिव्य प्रकाशपुँज है जो सदैव मानव जीवन को कष्टों और विघ्नों से तारने के लिए तारणहार रूप में अवतरित हुआ।
कृष्ण के जीवन में नारी शक्ति एवं उनके प्रति सम्मान विशेष दिखाई देता है इसलिए तो वे सदैव राधा के साथ अपनी पूर्णता प्रदर्शित करते है और राधे-राधे के उद्घोष से प्रफुल्लित हो उठते है। वासुदेव ने सदैव मुक्ति का मार्ग ही प्रशस्त किया। कृष्णरज को जिसने प्राप्त कर शिरोधार्य कर लिया वह तो तारणहार के द्वारा भवसागर से तर गया। हमें नन्द गोपाल से मिलने के लिए केवल श्रद्धा के पथ पर अनवरत चलना होगा। कमलनयन की आराधना और भक्ति के रस में जो आनंदविभोर हो उठता है वह सांसारिक बंधन से कहीं ऊपर उठ जाता है।
श्रद्धा और प्रेम की डुबकी से ही श्री कृष्ण के दर्शन संभव है। कृष्ण का अवतरण तो देवत्व की सुगंध से सृष्टि को सम्मोहित करने के लिए हुआ था। कृष्ण ने तो ममता को अनमोल सुख देने के लिए अनूठी लीलाएँ रची। कृष्ण भक्ति की ज्योत से यदि भक्त अपने जीवन को प्रकाशवान कर ले तो उसका जीवन अनंत काल तक आलौकित हो जाएगा।
कृष्ण ने तो दुनिया को केवल एक ही भाषा सिखाई है और वह है प्रेम। कृष्ण के लिए प्रेम ही सर्वस्व है। प्रेम के बंधन में बँधकर ही वह गोपियों के साथ घंटों तक रासलीला करते थे। मातृत्व प्रेम के लिए ही वह माखन चुराया करते थे।
गोविन्द गोपाल की अटखेलियों का वह रूप माँ की ममता को संतुष्टि प्रदान करता था। देवकीनंदन ने जन्म से ही अपनी सुरक्षा की व्यवस्था कर डाली। यशोदानन्दन और नन्दलाल बनकर संतान सुख प्रदान किया। अनूठी मनमोहक लीलाएँ कर एक ऐसे बालक का सृजन किया जो प्रत्येक युग में हर माँ के लिए कल्पना का सर्वश्रेष्ठ रूप है।
कृष्ण की प्रत्येक छवि सम्मोहित करने वाली है, पर मुरलीधर माखनचोर की लीलाओं पर तो हर कोई अनायास ही मोहित हो जाता है। कन्हैय्या और गोपाल की बाल लीलाओं ने तो सारे संसार को आनंद से भर दिया। कन्हैय्या की भक्ति में तो मुक्ति छुपी है।
यदि जीवन में कृष्ण की भक्ति का सूर्य देदीप्यमान हो जाए तो मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग स्वतः ही खुल जाएगा। कृष्ण तो सदैव प्रसन्नता एवं आनंद को अपने भीतर जीवंत रखते थे। संघर्ष से परिपूर्ण तो उनका पूरा जीवनकाल ही था। प्रेम और भक्ति का मिश्रित परिणाम तो श्री कृष्ण ही है। बंधन में बँधा हुआ स्वरुप नर है और जो बंधन से मुक्त हो गया वह तो नारायण स्वरुप है।
कृष्ण की प्रत्येक लीला कर्म के अस्तित्व को उजागर करती है। कृष्ण अवतरण के इस प्रमुख उत्सव जन्माष्टमी पर हम श्री कृष्ण के जीवन का चिंतन और मनन करेंगे और भक्तवत्सल भगवान की लीलाओं से आनंद एवं अनूठी शिक्षाएँ ग्रहण करने का प्रयास करेंगे।