प्रधानमंत्री की आस्था अगर लोकतांत्रिक मूल्यों, बराबरी के संवाद और बुजुर्गों के सम्मान में होती तो इस पत्र का जवाब वह खुद देते। उन्होंने जेपी नड्डा की ओर से एक हीनतर और आक्रामक किस्म का जवाब लिखवा कर भिजवा दिया। प्रियंका गांधी ने लिखा कि एक वरिष्ठ जननेता का निरादर करने की आखिर क्या जरूरत थी। लोकतंत्र की परंपरा और संस्कृति, प्रश्न पूछने और संवाद करने की होती है। धर्म में भी गरिमा और शिष्टाचार जैसे मूल्यों से ऊपर कोई नहीं होता। प्रधानमंत्री को अपने पद की गरिमा रखते हुए, सचमुच एक अलग मिसाल रखनी चाहिए थी। अपने एक वरिष्ठ सहकर्मी राजनेता के पत्र का आदरपूर्वक जवाब दे देते तो जनता की नजर में उन्हीं की छवि और गरिमा बढ़ती।