सुप्रीम कोर्ट ने एडल्टरी कानून पर आज अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 497 असंवैधानिक है, आईपीसी की धारा 497 महिला के सम्मान के खिलाफ है । शादी से बाहर संबंध को अपराध बनाने वाली धारा 497 के खिलाफ लगी याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि एडल्टरी को शादी से अलग होने का आधार बनाया जा सकता है लेकिन इसे अपराध नहीं माना जा सकता।
आईपीसी की धारा 497 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर अगस्त में सुनवाई पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। गुरुवार को चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले पर फैसला सुनाया। फैसला पढ़ते वक्त चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि पति पत्नी का मालिक नहीं है। महिला की गरिमा सबसे ऊपर है और उसका अपमान नहीं किया जा सकता है। महिला के सम्मान के खिलाफ आचरण गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 497 महिला और पुरुष में भेदभाव दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 497 असंवैधानिक है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये भी कहा था कि अगर विवाहित महिला के पति की सहमति से कोई विवाहित पुरुष संबंध बनाता है तो वह अपराध नहीं है, महिला पुरुष की निजी संपत्ति नहीं है जो कि उसके इशारे पर चले।
एडल्टरी पर अब तक क्या था कानून?
धारा 497 केवल उस पुरुष को अपराधी मानती है, जिसके किसी और की पत्नी के साथ संबंध हैं। पत्नी को इसमें अपराधी नहीं माना जाता। जबकि आदमी को पांच साल तक जेल का सामना करना पड़ता है। कोई पुरुष किसी विवाहित महिला के साथ उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है, लेकिन उसके पति की सहमति नहीं लेता है, तो उसे पांच साल तक के जेल की सज़ा हो सकती है। लेकिन जब पति किसी दूसरी महिला के साथ संबंध बनाता है, तो उसे अपने पत्नी की सहमति की कोई जरूरत नहीं है।