भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एन वी रमण ने एक बेहद महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। सीजेआई ने कहा कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) की विश्वसनीयता समय बीतने के साथ सार्वजनिक जांच के घेरे में आ गई है क्योंकि इसकी कार्रवाई और निष्क्रियता ने कुछ मामलों में सवाल खड़े किए हैं।
उन्होंने अलग-अलग जांच एजेंसियों को एक तंत्र के नीचे लाने के लिए एक ‘‘स्वतंत्र शीर्ष संस्था’’ बनाने का भी आह्वान किया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘जब CBI की बात आती है तो शुरुआती चरण में इस पर जनता का काफी भरोसा था। वास्तव में, न्यायपालिका को सीबीआई को जांच के स्थानांतरण के कई अनुरोध मिलते थे क्योंकि यह निष्पक्षता और स्वतंत्रता का प्रतीक था।’’
न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘जब भी नागरिकों को अपने राज्य की पुलिस के कौशल और निष्पक्षता पर संदेह हुआ, उन्होंने सीबीआई से जांच कराने की मांग की क्योंकि वे चाहते थे कि न्याय किया जाए। लेकिन, समय बीतने के साथ हर प्रतिष्ठित संस्था की तरह, CBI भी गहरी सार्वजनिक जांच के घेरे में आ गई है। इसके कार्यों और निष्क्रियता ने कुछ मामलों में इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए हैं।’’
दरअसल, प्रधान न्यायाधीश सीबीआई के 19वें डीपी कोहली स्मृति व्याख्यान में ‘‘लोकतंत्र: जांच एजेंसियों की भूमिका और जिम्मेदारियां’’ विषय पर बोल रहे थे।
मुख्य न्यायाधीश रमण ने कहा, ‘‘इन दिनों ऐसे कई उदाहरण हैं जब एक मामले की कई एजेंसियों द्वारा जांच की जाती है, जिससे अक्सर सबूत कमजोर पड़ जाते हैं, बयानों में विरोधाभास आता है। यह संस्थाओं को परेशान करने के उपकरण के रूप में दोषी ठहराए जाने से भी बचाएगा।’’ न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि पुलिस और जांच एजेंसियों के पास वास्तविक वैधता हो सकती है, लेकिन फिर भी संस्थाओं के रूप में उन्हें अभी भी सामाजिक वैधता हासिल करनी है। उन्होंने कहा, ‘‘पुलिस को निष्पक्ष होकर काम करना चाहिए और अपराध की रोकथाम पर ध्यान देना चाहिए। उन्हें समाज में कानून व्यवस्था कायम रखने के लिए जनता के सहयोग से भी काम करना चाहिए।’’