<p>सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद में नमाज इस्लाम में अनिवार्य नहीं बताने वाले अपने पहले के फैसले को बरकरार रखा है और इसे बड़ी बेंच के समक्ष भेजने से भी इनकार कर दिया है। आयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद से जुड़े 1994 के इस्माइल फारूकी मामले को पांच जजों वाली पीठ को भेजने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नज़ीर की तीन जजों वाली बेंच ने यह फैसला 2:1 के हिसाब से दिया।</p>
<p>सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को काफी अहम माना जा रहा है। कोर्ट के इस फैसले के बाद अयोध्या विवाद की सुनवाई से रोड़ा हट गया है। कोर्ट ने कहा कि अयोध्या विवाद में जल्द ही फैसला किया जाएगा। इस दौरान कोर्ट ने साफ किया कि अयोध्या मामले में मालिकाना हक तय करने के निर्णय में इस फैसले का कोई प्रभाव नहीं होगा।</p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>फैसले के पक्ष में बड़ी बातें</strong></span></p>
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<li>1994 के इस्माइल फारूकी बनाम भारतीय संघ मामले में 'मस्जिद में नमाज पढ़ना धर्म का अभिन्न अंग नहीं है' को लेकर की गई टिप्पणी का संदर्भ भूमि अधिग्रहण के संदर्भ में था। लिहाजा इस फैसले के पैरा 52 में की गई टिप्पणी को उसी संदर्भ में समझने की जरूरत है.</li>
<li>इस्माइल फारूकी केस में इबादत के स्थान के 'तुलनात्मक महत्व' का संदर्भ जैसी छूट सिर्फ अधिग्रहण के संबंध में कही गई हैं।</li>
<li>इस्माइल फारूकी केस में की गई टिप्पणी अयोध्या मामले में मालिकाना हक तय करने के फैसले को प्रभावित नहीं करेगा।</li>
<li>इस्माइल फारूकी मामले को पुनर्विचार के लिए बड़ी बेंच को भेजने की जरूरत नहीं है.</li>
</ul>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>जस्टिस अब्दुल नजीर की अलग राय </strong></span></p>
<p>फैसले में शामिल जस्टिस अब्दुल नजीर ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण से अलग राय रखी। उन्होंने कहा कि धर्म के लिहाज से क्या जरूरी है इस पर इस्माइल फारूकी केस में बिना किसी व्यापाक परीक्षण के निष्कर्ष निकाला गया। इस मामले में जो टिप्पणी संदेह के घेरे में थी उसे ही आधार मानकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रामजन्म भूमि मामले में अपना फैसला सुनाया था।</p>
<p>लिहाजा इस्माइल फारूकी केस को 1954 के शिरूर मठ मामले के प्रकाश में देखना जरूरी है।</p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>क्या है इस्माइल फारूकी केस?</strong></span></p>
<p>अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद केंद्र सरकार ने 7 जनवरी, 1993 को एक अध्यादेश लाकर 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया। इसके तहत विवादित जमीन का 120×80 फीट हिस्से का भी अधिग्रहण कर लिया गया। इस विवाद हिस्से को बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि परिसर कहा जाता है। </p>
<p>केंद्र सरकार के इसी फैसले को इस्माइल फारूकी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और अपनी याचिका में कहा था कि धार्मिक स्थल का सरकार अधिग्रहण नहीं कर सकती। इस पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।</p>
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