सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को निजी कंपनियों में काम करने वाले सभी कर्मचारियों के लिए पहले से ज्यादा पेंशन का रास्ता साफ कर दिया है। इससे निजीप कंपनी में काम कर रहे कर्मचारियों की पेंशन में रिटायरमेंट के समय कई गुना की बढ़ोतरी हो जाएगी। अदालत ने कर्मचारी भविष्य निधि संस्था (ईपीएफओ) द्वारा केरल हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल विशेष याचिका को खारिज कर दिया है। उच्च न्यायालय ने ईपीएफओ से कहा था कि वह सभी सेवानिवृत्त कर्मचारियों को उनकी पूरी तनख्वाह के आधार पर पेंशन दें ना कि अंशदान के आधार पर तय किया जाए जोकि प्रतिमाह अधिकतम 15 हजार रूपये निर्धारित है। अपने आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, 'हमें विशेष याचिका में कोई योग्यता नहीं मिली। इसी वजह से इसे खारिज किया जाता है।'
पेंशन की गणना (कर्मचारी के द्वारा की गई नौकरी में बिताए गए कुल वर्ष+2)/70xअंतिम सैलरी के आधार पर होगी। इस तरह यदि किसी कर्मचारी की सैलरी 50 हजार रुपये महीना है, तो उसे हर नए नियम के बाद करीब 25 हजार रुपये पेंशन के रूप में मिलेंगे। हालांकि, पुराने नियम के तहत यह पेंशन मात्र 5000 के लगभग होती थी। जहां यह खुशी की बात है कि कर्मचारियों की पेंशन बढ़ जाएगी वहीं भविष्य निधि (पीएफ फंड) में कमी आएगी। अब इसका ज्यादा हिस्सा पीएफ की बजाए कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) में जाएगा। मगर नए नियम के अनुसार इतनी पेंशन बढ़ जाएगी जिससे कि इस अंतर का फासला बढ़ जाएगा। केंद्र सरकार ने ईपीएस की शुरुआत 1995 में की थी। जिसके अंतर्गत नियोक्ता कर्मचारी की तनख्वाह का अधिकतम सालाना 6,500 रुपये (प्रतिमाह 541) का 8.33 प्रतिशत ही ईपीएस में जमा कर सकता था।
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हालांकि मार्च 1996 में सरकार ने इस कानून में संशोधन किया। जिसके अनुसार यदि कर्मचारी अपनी पूरी तनख्वाह के हिसाब से योजना में योगदान देना चाहे और नियोक्ता भी इसके लिए राजी हो तो उसे पेंशन भी उसी हिसाब से मिलनी चाहिए। सितंबर 2014 में ईपीएफओ ने एक बार फिर से नियम में बदलाव किया। जिसके बाद अधिकतम 15 हजार रुपये के 8.33 फीसदी के योगदान को मंजूरी मिल गई। हालांकि इसके साथ यह नियम भी लाया गया है कि यदि कोई कर्मचारी अपनी पूरी तनख्वाह पर पेंशन लेना चाहता है तो उसकी पेंशन वाली तनख्वाह पांच साल के हिसाब से तय की जाएगी। इससे पहले यह पिछले साल की औसत तनख्वाह पर तय होता था। जिसके कारण कई कर्मचारियों की तनख्वाह कम हो गई थी। फिर मामला उच्च न्यायालय पहुंचा। जिसके बाद केरल उच्च न्यायालय ने 1 सितंबर 2014 को हुए बदलाव को रद्द करके पुरानी प्रणाली को बहाल कर दिया था।