जानिए ‘दुल्ला भट्टीवाला, दुल्ले दी धी व्याही’ लोहड़ी के पीछे की ये दिलचस्प कहानी

<p>लोहड़ी का त्यौहार वैसे तो हर राज्य अपने-अपने तरीके से मनाया जाता है। सबसे ज्यादा पंजाब में धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार सर्दी के मौसम के जाने और फसल के साथ जोड़कर देखा जाता है। लोहड़ी के दिन पंजाब में लोग शाम के समय बाहर आंगन में आग जलाकर उसके ईर्द-गिर्द चक्कर लगाते हैं और खूब नाचते गाते हैं। आग के चक्कर लगाते समय लोग इसमें मूंगफली, रेवडी, गूड आदि फेंकते हैं और आनंद उठाते हैं। आपने अक्सर सुना होगा कि पंजाब में ज्यादातर इस दिन <span style=”color:#16a085″><strong><em>&#39;सुन्दर मुंदरिए, तेरा कौन विचारा, दुल्ला भट्टीवाला, दुल्ले दी धी व्याही….&#39;</em></strong></span>&nbsp; यह लोहड़ी खूब गाई जाती है। इस लोहड़ी को गाने के पीछे क्या रहस्य है। आइए हम आपको बताते हैं कि इसके पीछे क्या रहस्य छुपा है।&nbsp; &nbsp;</p>

<p>अमृतसर में स्थित वाघा बॉर्डर से लगभग 200 किलोमीटर पार पाकिस्तान के पंजाब में पिंडी भट्टियां है। वहीं लद्दी और फरीद खान के यहां 1547 ई. में राय अब्दुल्ला खान हुए, जिन्हें दुनिया अब दुल्ला भट्टी बुलाती है। राय अब्दुल्ला खान राजपूत मुसलमान थे। उनके पैदा होने से चार महीने पहले ही उनके दादा संदल भट्टी और बाप को हुमायूं ने मरवा दिया था। उनकी खाल में भूसा भरवा के गांव के बाहर लटकवा दिया था। इसके पीछे वजह ये थी कि उन्होंने मुगलों को लगान देने से मना कर दिया था।</p>

<p><span style=”color:#c0392b”><strong>कौन थे दुल्ला भट्टी?</strong></span></p>

<p>जब हम लोहड़ी गाते हैं तो इसमें एक नाम आता है &#39;दूल्हा भट्टी&#39; का नाम जरूर आता है। वो दुल्ला भट्टी उस जमाने के रॉबिनहुड थे। अकबर उन्हें डकैत मानता था। वो अमीरों से, अकबर के जमीदारों से, सिपाहियों से सामान लूटकर गरीबों में बांटते। इसलिए वो अकबर की आंखों में चुभते थे। उन्होंने अकबर को इतना सताया कि आगरे से राजधानी लाहौर शिफ्ट करनी पड़ी। लाहौर तब से पनपा है, तो आज तक बढ़ता गया। पर सच तो ये रहा कि हिंदुस्तान का शहंशाह दुल्ला भट्टी से दहलता था।</p>

<p>इसके इलावा लोहड़ी को भगवान कृष्ण से जोड़कर भी देखा गया है क्योंकि भगवान् कृष्ण ने लोहिता राक्षसी को मारा, जब वो गोकुल आई थी। एक कहानी के अनुसार कृष्ण जब बचपन में थे तो कंस मामा ने उनके मरने के लिए लोहिता नाम की एक राक्षिका को भेजा था। लेकिन कृष्ण ने उसको खेल-खेल में ही मार दिया। इसके बाद गोकुल में ख़ुशी का माहौल बना और उस दिन को लोहड़ी के रूप में माना जाने लगा।</p>

<p><span style=”color:#e74c3c”><strong>दुल्ला भट्टी लोहड़ी से कैसे जुड़ गए?</strong></span></p>

<p>दुल्ला भट्टी लोहड़ी से कैसे जुड़ गए इसका भी इक किस्सा है। सुंदरदास किसान था, उस दौर में जब संदल बार में मुगल सरदारों का आतंक था। उसकी दो बेटियां थीं सुंदरी और मुंदरी। गांव के नंबरदार की नीयत लडकियों पर ठीक नहीं थी। वो सुंदरदास को धमकाता बेटियों की शादी खुद से कराने को। सुंदरदास ने दुल्ला भट्टी से बात कही और दुल्ला भट्टी नंबरदार के गांव जा पहुंचा। उसके खेत जला दिए। लडकियों की शादी वहां की जहां सुंदरदास चाहता था। उसकी इच्छा पूरी होने पर उन्होंने शगुन में शक्कर दी। वो दिन और आज का दिन, लोहड़ी की रात को आग जलाकर लोहड़ी मनाई जाती है। जब फसल कट कर घर आती है। गेंहू की बालियां आग में डालते हैं, गाते हैं।</p>

<p>पंजाब में दुल्ला भट्टी से जुड़ी एक लोककथा काफी प्रचलित है। इसका जिक्र लोहड़ी से जुड़े हर गीत में भी किया जाता है। कहा जाता है कि मुगल काल में बादशाह अकबर के समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक युवक पंजाब में रहता था। एक बार कुछ अमीर व्यापारी कुछ समान के बदले इलाके की लड़कियों का सौदा कर रहे थे। तभी दुल्ला भट्टी ने वहां पहुंचकर लड़कियों को व्यापारियों के चंगुल से मुक्त कराया और फिर इन लड़कियों की शादी हिन्दू लड़कों से करवाई। इस घटना के बाद से दुल्हा को भट्टी के नायक की उपाधि दी गई और हर बार लोहड़ी पर उसी की याद में कहानी सुनाई जाती है। माना जाता है कि दुल्ला भट्टी की कहानी सुनाए बिना लोहड़ी का त्योहार पूरा नहीं माना जाता।</p>

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